पटना: हर पार्टी सार्वजनिक तौर से चुनावी सभा में तो ये कहती है कि हम जातिवाद की राजनीति नहीं करते, लेकिन बिहार की राजनीति को देखते हुए लगता है कि यहां बिना जाति के राजनीति हो ही नहीं सकती। चुनाव 2020 के हर चुनावी मंच से राजनेता जात-पात से ऊपर उठने की बात तो करते हैं, लेकिन सभी पार्टियों ने टिकट भी जातिगत समीकरणों को ध्यान रखकर बांटे हैं। हालांकि चुनावी मंच से खुलेआम जाति के नाम पर वोट देने की अपील तो नहीं की जा रही है लेकिन पर्दे के पीछे पूरी चुनावी – राजनीति इसी के आसपास घूम रही है।
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बेरोजगारी का मुद्दा छोड़ बाबू साहब की राजनीति पर उतरे तेजस्वी यादव
बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण के चुनाव प्रचार के अंतिम दिन महागठबंधन से मुख्यमंत्री पद के दावेदार तेजस्वी यादव के एक बयान पर बवाल मचा हुआ है। दरअसल हर चुनावी सभा में बेरोजगारी का मुद्दा उठाने वाले तेजस्वी यादव ने इशारों-इशारों में जातिवाद का कार्ड खेला है। रोहतास के एक चुनावी सभा में उन्होंने कहा कि जब लालू यादव का राज था तो गरीब सीना तान के बाबू साहब के सामने चलते थे। हालांकि उन्होंने किसी जाति का नाम नहीं लिया लेकिन उनका इशारा राजपूतों की तरफ ही था। इसके पहले तेजस्वी यादव लगभग हर चुनावी सभा में यह कहते रहे कि अगर मौका मिला तो सबसे पहली कैबिनेट की बैठक में युवाओं के लिए दस लाख सरकारी नौकरी देंगे। इतना ही नही परीक्षा भर्ती फॉर्म, व ट्रेन बसों के किराया तक विद्यार्थियों को नही लगने देंगे। मुख्यमंत्री बनने के बाद उनका पहला कलम युवाओं के भविष्य के लिए ही चलेगा।
तेजस्वी यादव के बयान को बीजेपी ने बताया राजपूत विरोधी
बीजेपी नेता और बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने कहा कि वे तेजस्वी यादव के बाबू साहब यानी राजपूतों के बारे में आपत्तिजनक टिप्पणी की घोर निंदा करते हैं। उन्होंने कहा कि ये वही राष्ट्रीय जनता दल (RJD) है जिसने रघुवंश प्रसाद सिंह को अपमानित करने का काम किया था। जब नरेंद्र मोदी की सरकार ने ऊंची जाति के लोगों को दस प्रतिशत आरक्षण दिया था तो अकेले राष्ट्रीय जनता दल (RJD) ने इसका विरोध किया। सुशील कुमार मोदी ने कहा कि लालू प्रसाद यादव और आरजेडी की पूरी राजनीति ही भूमिहार, राजपूत, ब्राह्मण, कायस्थ के ख़िलाफ़ रही है, इसलिए लालू यादव ने भूरा बाल साफ करों जैसी बात करते रहे। अब तेजस्वी यादव ने राजपूत जाति को लेकर जो बयान दिया है इसके लिए जनता उन्हे माफ़ नहीं करेगी।
क्या तेजस्वी यादव को यह लगने लगा है कि रोजगार जैसे मुद्दे पर नही मिलेंगे वोट
कभी ‘भूरा बाल’ (भूमिहार, राजपूत, ब्राह्मण, कायस्थ) साफ करने’ का नारा देनेवाले लालू प्रसाद ने भी मान-मुनव्वल करने की कोशिश की थी। आज उनके पुत्र और महागठबंधन की ओर से मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार तेजस्वी यादव भी राजपूतों पर बयान देने के बाद अब सफाई देते फिर रहे हैं। तेजस्वी यादव का कहना है कि उनके कहना का आशय राजपूत वर्ग का नही बल्कि डाक्टर साहव, एसडीओ साहब, सरकारी दफ्तर में बडा बाबू आदि था। लेकिन तेजस्वी अब चाहे जो कहें एक बार तीर कमान से निकलने के बाद वापस नही आता, या फिर तेजस्वी यादव बिहार की राजनीति को समझने लगे हैं। उन्हे यह समझ में आ चुका है कि बिहार जैसे राज्य में मुद्दों को सुनने के लिए तो लोग इकठ्ठे हो जाते है लेकिन मतदान के समय ‘जात की राजनीति’ सभी मुद्दों पर हावी हो जाती है। तो क्या यह मान लिया जाए कि तेजस्वी यादव ने काफी सोच समझकर जातीय कार्ड खेला है। क्या तेजस्वी यादव यह भांप चुके है कि बेरोजगारी, विकास जैसे मुद्दे पर आरजेडी को वोट नही मिल सकता।
बिहार चुनाव में फिर एक बार राजनीतिक दलों के लिए जात बना वोट का आधार
ऐसा लग रहा था कि बिहार चुनाव में रोजगार एक बड़ा चुनावी मुद्दा बनेगा, लेकिन ऐसा अभी तक नहीं दिख रहा है। उपर से तेजस्वी यादव का बाबू साहब का बयान ने असल चुनावी मुद्दों को ही पीछे छोड़ दिया है। बिहार की राजनीति में लगभग सभी राजनीतिक पार्टियों में हर जाति के अपने – अपने बाहुबली नेता हैं। इसी आधार पर इन बाहुबली नेताओं को चुनावों में राजनीतिक दल जातिगत समीकरणों को ध्यान में रख कर प्रत्याशी भी बनाते हैं। क्योंकि बिहार की राजनीति में जातिगत, बाहुबल और पैसे की ताकत राजनीति की बिसात में अहम भूमिका होती है। दिवंगत रामविलास पासवान की लोकजनशक्ति पार्टी (LJP) और उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक समता पार्टी(RLSP) पूरी तरह जातिगत समीकरणों पर आधारित है। वहीं लालू प्रसाद यादव की राष्ट्रीय जनता दल (RJD) को मुस्लिम यादव गठजोड़ के रूप में देखा जाता है। नीतीश कुमार के जनतादल यूनाइटेड (JDU) को भी कुर्मी-कोयरी की पार्टी की संज्ञा दी जाती है। वहीं भूमिहार, कायस्थ, ब्राह्मण इत्यादि और वैश्य भारतीय जनता पार्टी (BJP) के वोटर माने जाते हैं। शायद यही वजह है कि जात की राजनीति के कारण ही बिहार के गाँवों में लोग आज भी शिक्षा, स्वास्थ्य, सिंचाई और रोजगार जैसी बुनियादी सुविधाओं के लिए सरकार की तरफ आंख लगाए हुए हैं। हालांकि यह भी सच है कि बिहार की जनता ने कई बार जातिगत समीकरणों से ऊपर उठ कर मतदान किया है। दिवंगत कर्पूरी ठाकुर , लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार की सरकार इसके उदाहरण हैं, लेकिन अफसोस की बात यह है कि सत्ता में आने के बाद इन राजनीति दलों ने जातिगत राजनीति को तवज्जो देकर जनता की भावनाओं को ठेस ही पहुंचाने का काम किया।
बिहार चुनाव के पहले चरण में कल इन सीटों पर होगा मतदान
बिहार चुनाव के पहले में 16 जिलों के 71 सीटों पर मतदान होना है जिसके लिए 31 हजार पोलिंग स्टेशन बनाए गए हैं।पहले चरण में बांका, मुंगेर, जमुई, लखीसराय, शेखपुरा, नवादा, गया, जहानाबाद, अरवल, भोजपुर, औरंगाबाद, पटना, रोहतास, कैमूर और बक्सर के जिन 71 सीटों पर मतदान होगा वो इस प्रकार हैं- कहलगांव, सुल्तानगंज, अमरपुर, धोरैया (एससी), बांका, कटोरिया (एसटी), बेलहर, तारापुर, मुंगेर, जमालपुर, सूर्यगढ़, लखीसराय, शेखपुरा, बारबीघा, मोकामा, बाढ़, मसौढ़ी (एससी), पालीगंज, बिक्रम, संदेश, बराहरा, आरा, अगियांव (एससी), तरारी, जगदीशपुर, शाहपुर, ब्रह्मपुर, बक्सर, दुमरांव, रायपुर (एससी), मोहनिया (एससी), भाबुआ, चैनपुर, चेनारी (एससी), सासाराम, करगहर, दिनारा, नोखा, देहरी, कराकट, अरवल, कुर्था, जेहानाबाद, घोसी, मखदूमपुर (एससी), गोह, ओबरा, नबी नगर, कुटुम्बा (एससी), औरंगाबाद, रफीगंज, गुरुआ, शेरघाटी, इमामगंज, (एससी), बाराचट्टी (एससी), बोध गया (एससी), गया टाउन, टीकरी, बेलागंज, अतरी, वजीरगंज, राजौली (एससी), हिसुआ, नवादा, गोबिंदपुर, वरसालीगंज, सिकंदरा (एससी), जमुई, झाझा, चकाई में वोट डाले जाएंगे। अब देखना है कि कल के मतदान में जात हावी होता है या जनता विकास और रोजगार के नाम पर अपने मताधिकार का प्रयोग करती है।
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