गढ़वाल और कुमाऊं मंडलों में आरक्षित वन क्षेत्रों में पड़ने वाली नदियों में उपखनिज चुगान अब जीपीएस और खुफिया कैमरों की निगरानी में होगा। इस सिलसिले में शासन से मिले निर्देशों के क्रम में वन विभाग ने कवायद प्रारंभ कर दी है। उपखनिज से लदे वाहन की जीपीएस ट्रैकिंग में आने वाली कठिनाइयों के मद्देनजर इसका तोड़ भी ढूंढ लिया गया है। इसके तहत वाहन के खनन क्षेत्र में दाखिल होने से लेकर लदान व वापसी का जीपीएस ब्योरा रवन्ने के साथ नत्थी किया जाएगा।
कुमाऊं मंडल में गौला नदी में सीसी कैमरों की निगरानी में उपखनिज चुगान का कार्य हो रहा है। हाल में शासन में हुई उच्च स्तरीय बैठक में अवैध खनन के साथ ही ओवरलोडिंग समेत अन्य दिक्कतों से पार पाने के लिए खनन क्षेत्रों में भी सीसी कैमरे लगाने के साथ ही जीपीएस (ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम) पर जोर दिया गया। इस कड़ी में वन विभाग ने कवायद शुरू कर दी है।
सूत्रों के मुताबिक विभाग ने गढ़वाल में देहरादून, हरिद्वार, कोटद्वार और कुमाऊं मंडल में कोसी व दाबका में आरक्षित वन क्षेत्रों में वन विकास निगम को आवंटित खनन लॉटों में सीसी कैमरे लगाने का निश्चय किया है। जीपीएस का भी तोड़ ढूंढ लिया गया है। सूत्रों ने बताया कि जीपीएस ट्रैकिंग के लिए इसका उपखनिज ढुलान में लगे वाहन पर लगा होना अनिवार्य है।
रवन्नों के फर्जीबाड़े पर लगेगा अंकुश
चूंकि, ढुलान करने वाले वाहन निजी हैं, जिन पर जीपीएस संभव नहीं है। इसे देखते हुए तय किया गया है कि खनन क्षेत्र में वाहन के प्रवेश करने से लेकर उसमें माल भरने और वापसी तक की जीपीएस रीडिंग ली जाएगी। इसकी जानकारी भी रवन्ने के साथ होगी। इससे रवन्नों के फर्जीबाड़े पर भी अंकुश लगेगा। उधर, प्रमुख मुख्य वन संरक्षक जयराज ने बताया कि जल्द ही निगम को आवंटित खनन क्षेत्रों में सीसी कैमरे लगाने के साथ ही जीपीएस की व्यवस्था कर दी जाएगी।