देवीधुरा बग्वाल में फलों के साथ पत्थर भी फैंके गए, 241 लोग हुए घायल

1981

चंपावत जिले के देवीधुरा स्थित मां बाराही देवी मंदिर के मैदान में रक्षा बंधन के दिन खेली जाने वाली बग्वाल लगभग 8 मिनट चली। रविवार को हुई बग्वाल में पहले तो फलों से युद्ध किया लेकिन बाद में पत्थर भी बरसने लगे। जिससे 241 रणबांकुरे घायल हुए। जिनका उपचार किया गया। वहीं कुछ ने बिच्छू घास लगाकर अपना उपचार स्वयं किया। बग्वाल देखने के लिए हजारों की संख्या में लोग मौजूद रहे।
रक्षा बंधन के दिन बग्वाल शुरू होने से ठीक पहले झमाझम बारिश शुरु हो गई। इस दौरान जोश से भरे चारों खामों के रणबांकुरों ने एक दूसरे पर पहले तो फलों से वार किया लेकिन अंतिम 2 मिनटों में आसमान में पत्थर तैरते नजर आये। मंदिर में मां के दर्शन करने और बग्वाल देखने के लिए देश भर से हजारों लोग पहुंचे थे। इस दौरान मंदिर परिसर सहित मंदिर के मैदान से लगे घरों की छतों में लोगों की भीड़ लगी रही। दोपहर 1.39 बजे सर्वप्रथम चम्याल खाम के रणबांकुरे हाथों में बांस से बने फर्रे और रक्षा का धागा बांधकर खोलीखांड़ दुर्वाचैड़ मैदान में पहुंचे। जिसका नेतृत्व गुलाबी पगड़ी पहने गंगा सिंह चम्याल ने किया। फिर लाल पगड़ी में गहड़वाल खाम के त्रिलोक सिंह, केसरिया पगड़ी में लमगडिया खाम के वीरेंद्र सिंह व सफेद पगड़ी में वालिक खाम के चेतन सिंह बिष्ट का दल बग्वाल के लिए मैदान में पहुंचा। सभी दलों ने उत्साह और जोश के साथ मां बाराही देवी के मंदिर की परिक्रमा की। 2 बजकर 38 मिनट में आचार्य कीर्ति बल्लभ जोशी ने शंखनाद किया जिसके बाद बग्वाल शुरू हो गई। पहला फल चम्याल खाम की ओर से लमगड़िया खाम की ओर फेंका गया। जिसके बाद हवा में हर तरफ फल ही फल तैरते नजर आए। पूरा क्षेत्र मां बाराही के जयकारों से गुंजायमान हो गया। कुछ समय के बाद रणबांकुरे फलों के साथ हवा में पत्थर भी फैंकते रहे। अंत में हवा में पत्थर ही पत्थर नजर आने लगे ऐसा लग रहा था कि मां के भक्त अपनी परंपरा को संपन्न करने के लिए एक व्यक्ति के बराबर रक्त प्रवाहित करने को आतुर हो। झमाझम बारिश के बीच शुरू हुई बग्वाल 2 बजकर 46 मिनट तक चली। इस बग्वाल में चारों खामों के रणबाकुरों ने अपना पराक्रम दिखाया। लगभग 8 मिनट चले बग्वाल में रक्त बहता रहा। दस दौरान मंदिर में ध्यान पर बैठे पुजारी को एक व्यक्ति के बराबर रक्त बहने का आभास होते ही वह पीले वस्त्र में चंवर हिलाते हुए मैदान में पहुंचे और बग्वाल रोकने के आदेश दिये। बग्वाल खेलने के बाद सभी रणबांकुरे आपस गले मिले। युद्ध में 241 लोगों को चोटें आई जिनका उपचार मौके पर मौजूद चिकित्सा कर्मियों ने किया। बग्वाल को देखने के लिए केंद्रीय कपड़ा मंत्री अजय टम्टा व सीएम के प्रतिनिधि के रुप में उच्च शिक्षा राज्य मंत्री डॉ. धन सिंह रावत भी मौजूद रहे।

बग्वाल एक परंपरा

चंपावत जिले के देवीधुरा स्थित मां बाराही देवी के मैदान में होने वाले ऐतिहासिक बग्वाल मेला जिसे आषाढ़ी कौतिक भी कहते है। हर वर्ष रक्षा बंधन के दिन होता है। पौराणिक मान्यता है कि एक समय में मां वाराही देवी को मनाने के लिए नर बलि प्रथा शुरु हुई थी। प्रथा के अनुसार हर वर्ष गांव के एक व्यक्ति की बली दी जाती थी। इसी के तहत एक साल चम्याल खाम की एक बुजुर्ग महिला को अपने इकलोते पौत्र की बलि देनी थी। उसने अपने पौत्र की रक्षा के लिए मां बाराही देवी की उपासना की। कहा जाता है कि मां बाराही देवी ने वृद्धा को दर्शन देकर कहा कि अगर चार खामों के लोग आपस में बग्वाल खेल कर एक व्यक्ति के बाराबर रक्त बहायेंगे तो उसके पौत्र को बलि नहीं देनी होगी। जिसके बाद से क्षेत्र के चार खांमों के लोगों ने इस बग्वाल को शुरू किया। माना जाता है कि एक इंसान के शरीर में प्रवाहित खून के बराबर रक्त बहने तक चार खामों के बीच पाषाण युद्ध अर्थात बग्वाल होती है। बग्वाल खेलने के दौरा मंदिर का पुजारी मंदिर में ध्यान में बैठता है और उसे जब लगता है कि इस युद्ध के दौरान एक व्यक्ति के बाराब खून बह चुका है तो वह मां का चंवर लेकर मैदान में पहुंचता है और बग्वाल को रोकने का आदेश देता है जिसके बाद बग्वाल समाप्त हो जाती है।

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