देहरादून। स्मार्ट सिटी के तहत रोडवेज कार्यशाला की भूमि पर बनने वाली ग्रीन बिल्डिंग पर फिलहाल ब्रेक लग गया है। इसके साथ ही भूमि के बदले रोडवेज को स्मार्ट सिटी लिमिटेड की ओर से दिए गए बीस करोड़ रुपये भी फंस गए हैं। हाईकोर्ट की ओर से भूमि ट्रांसफर करने पर अग्रिम आदेश तक लगाई गई रोक के बाद ग्रीन बिल्डिंग को लेकर स्मार्ट सिटी लिमिटेड की तरफ से चल रही कसरत थम गई है। हालांकि, अधिकारियों का कहना है कि भूमि का मामला सरकार व रोडवेज के बीच का है और सरकार को ही मामले का हल निकालना है।स्मार्ट सिटी के लिए रोडवेज की हरिद्वार रोड स्थित कार्यशाला की जमीन को शहरी विकास विभाग को देने का मामला फंसता दिख रहा है।
100 करोड़ रुपये डिमांड कर रही रोडवेज कर्मचारी यूनियन की ओर से हाईकोर्ट में अपील
जमीन के बदले आइएसबीटी का स्वामित्व और 100 करोड़ रुपये डिमांड कर रही रोडवेज कर्मचारी यूनियन की ओर से हाईकोर्ट में अपील की गई थी। सरकार की ओर से जमीन के बाजारी भाव को भी दरकिनार करते हुए रोडवेज को सर्किल रेट के हिसाब से करीब 58 करोड़ के भुगतान की तैयारी की जा रही थी, जो यूनियन को नागवार था। इस मामले पर रोडवेज के शेष कर्मचारी संगठन भी आंदोलन कर लगातार सरकार पर दबाव बना रहे हैं। स्मार्ट सिटी के अंतर्गत कार्यशाला की करीब 25 एकड़ जमीन पर जिले के सभी सरकारी कार्यलयों की ग्रीन बिल्डिंग का निर्माण कराया जाना है।
इसके लिए सरकार ने रोडवेज को यह जमीन शहरी विकास को ट्रांसफर करने के आदेश दिए थे। कर्मचारियों के विरोध को देखते हुए सरकार ने इस मामले में प्रतिपूर्ति के फैसले पर मुख्य सचिव की अध्यक्षता में गठित कमेटी को विवाद का हल निकालने के निर्देश दिए थे।
जिसके तहत गत नौ दिसंबर को मुख्य सचिव उत्पल कुमार की अध्यक्षता में हुई बैठक में कार्यशाला की जमीन की प्रतिपूर्ति पर विचार किया गया। उच्चस्तरीय कमेटी में परिवहन व शहरी विकास सचिव शैलेश बगोली, रोडवेज के प्रबंध निदेशक रणवीर सिंह चौहान व वित्त सचिव अमित नेगी भी बतौर सदस्य मौजूद थे। सूत्रों के मुताबिक बैठक में वित्त विभाग ने आइएसबीटी और कार्यशाला शिफ्टिंग का खर्च देने से इन्कार कर दिया था। इसके बाद कर्मचारी यूनियन हाईकोर्ट गई और दो दिन पहले हाईकोर्ट ने जमीन ट्रांसफर करने पर रोक लगा दी।
रामास्वामी के पत्र को बनाया आधार
हाईकोर्ट में यूनियन ने राजस्व परिषद एवं उत्तराखंड परिवहन निगम बोर्ड के अध्यक्ष एस. रामास्वामी के उस पत्र को पेश किया जो उन्होंने परिवहन मंत्री को एक नवंबर को भेजा था। रामास्वामी ने कार्यशाला की भूमि का बाजारी भाव करीब 285 करोड़ बताया था। साथ ही यह भी कहा था कि सरकार बाजारी भाव या भूमि अधिग्र्रहण अधिनियम के तहत जमीन ले सकती है। पत्र में बताया गया था कि निगम की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है और कर्मचारियों को दो-दो माह से वेतन नहीं मिल रहा।
नहीं मिल सकता आइएसबीटी का स्वामित्व
रोडवेज को आइएसबीटी का स्वामित्व देने में तकनीकी अड़चन आड़े आ गई। सरकार ने आइएसबीटी की निर्माता रैमकी कंपनी के संग 2023 तक का अनुबंध किया हुआ है। दरअसल, सरकार ने रैमकी के साथ अप्रैल 2003 में पीपीपी मोड में आइएसबीटी का 20 साल का अनुबंध किया था। फिर जून 2004 में आइएसबीटी का लोकार्पण हुआ। तभी से रैमकी कंपनी इसका संचालन करती आ रही। ऐसे में करार की शर्तों के मुताबिक 2023 तक आइएसबीटी रैमकी के पास ही रहेगा।
आशीष श्रीवास्तव (सीईओ स्मार्ट सिटी प्राइवेट लिमिटेड) का कहना है कि रोडवेज कार्यशाला की जमीन पर ग्रीन एंटीग्रेटेड बिल्डिंग बननी है। स्मार्ट सिटी की तरफ से रोडवेज को 20 करोड़ रुपये जारी किए गए हैं। इसके साथ ही 15 करोड़ की बिल्डिंग बननी है। हमारा जमीन विवाद में कोई रोल नहीं है। यह रोडवेज व सरकार के बीच का मसला है।