जलवायु परिवर्तन के गंभीर खतरे सामना कर रही दुनिया
प्रधानमंत्री ने कहा कि आज दुनिया गंभीर जल संकट के दौर से गुजर रही है। जब हम मरुस्थलीकरण पर बात करते हैं तो जल संकट जैसी समस्या पर भी विचार करना पड़ता है। हमें जमीन को मरुस्थलीकरण से बचाने के लिए जल संरक्षण पर भी ध्यान देना होगा। हमें इस बात पर ध्यान देना होगा कि धरती के मरुस्थलीकरण से हमारा सतत विकास भी प्रभावित होता है। भारत की संस्कृति में धरती, जल, वायु और पर्यावरण के संरक्षण की संकल्पना मौजूद है। हमें यह बताते हुए खुशी हो रही है कि भारत में साल 2015 से साल 2017 के बीच वनीकरण में 0.8 मिलियन हेक्टेयर का इजाफा हुआ है।
धरती को नुकसान पहुंचा रहा प्लास्टिक कचरा
प्रधानमंत्री ने कहा कि प्लास्टिक का कचरा भी मरुस्थलीकरण को बढ़ा रहा है। प्लास्टिक का कचरा न केवल स्वास्थ्य का प्रभावित कर रहा है, यह धरती की उर्वरता के लिए भी समस्याएं पैदा कर रहा है। हमारी सरकार ने घोषणा की है कि वह आने वाले कुछ वर्षों के भीतर सिंगल यूज प्लास्टिक का प्रचलन खत्म कर देगी। हम पर्यावरण अनुकूल विकास के लिए प्रतिबद्ध हैं। हम प्लास्टिक के कचरे के निस्तारण पर काम कर रहे हैं। हमें उम्मीद है कि आने वाले वक्त में हम सिंगल यूज प्लास्टिक को अलविदा कह देंगे। दुनिया के लिए भी सिंगल यूज प्लास्टिक को अलविदा कहने का समय आ गया है।
दुनिया के 77 फीसदी बाघ केवल भारत में
इस मौके पर केंद्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि भारत ने बढ़ते मरुस्थलीकरण से धरती को बचाने की दिशा में कई कदम उठाए हैं। पर्यावरण संरक्षण को लेकर भारत ने उल्लेखनीय काम किया है। यही वजह है कि दुनिया के 77 फीसदी बाघ केवल भारत में हैं। भारत ने बढ़ती ग्लोबल वर्मिंग और प्रदूषण से निपटने के लिए टैक्स में छूट देकर ई-वाहनों को भी बढ़ावा दिया है। यदि इंसान के कर्मों से पर्यावरण परिवर्तन हुआ है तो उसी के सकारात्मक योगदान से ही उसमें सुधार भी लाया जाएगा। हमने टैक्स में छूट देकर इलेक्ट्रिक वाहनों को प्रमोट करने का काम किया है। हमारी सरकार ने जल संरक्षण के लिए अलग से मंत्रालय का भी गठन किया है।
मरुस्थलीकरण से धरती को बचाने की मुहिम
जावड़ेकर ने दो सितंबर से शुरू हुए इस कार्यक्रम का शुभारंभ किया था। यह संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन टू कॉम्बैट डेजर्टिफिकेशन (United Nations Convention to Combat Desertification, UNCCD) के तहत अयोजित होने वाला 14वां सम्मेलन है। इसका कार्यक्रम का आयोजन दुनिया को बढ़ते मरुस्थलीकरण से बचाने की मुहिम के तहत किया गया है। इस बार भारत इस कार्यक्रम की मेजबानी कर रहा है। इस सम्मेलन में अभी तक दुनिया भर के वैज्ञानिक अपने अपने मुल्कों की समस्याएं और उनके निपटने को लेकर उठाए गए कदमों को साझा कर चुके हैं।
साल 2020 तक सम्मेलन की मेजबानी करेगा भारत
भारत में पहली बार बड़े स्तर पर यह कार्यक्रम हो रहा है। मौजूदा वक्त में भारत संयुक्त राष्ट्र की भूक्षरण के खिलाफ चल रहे अभियान का प्रमुख है। भारत साल 2020 तक इस सम्मेलन की मेजबानी करेगा। इससे पहले चीन इस सम्मेलन की अध्यक्षता करता आया है। साल 2017 में भी चीन ने ही इस कार्यक्रम का आयोजन किया था। इस कार्यक्रम में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भी आना था लेकिन किन्हीं कारण से वह नहीं आ पाए। इस कार्यक्रम में दुनिया के 190 से अधिक देशों के प्रतिनिधि भाग ले रहे हैं। बैठक में धरती पर जलवायु परिवर्तन, नष्ट होती जैव विविधता, मरुस्थलीकरण जैसे बढ़ते खतरों से निपटने को लेकर मंथन हो रहा है।
सामने आएगा चुनौतियों से निपटने का रोडमैप
सूत्रों ने बताया कि 13 सितंबर तक चलने वाले इस सम्मेलन से जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता, मरुस्थलीकरण जैसी समस्याओं का सामना करने के लिए रोडमैप सामने आ सकता है। इंसान की आने वाली पीढ़ियों के लिए धरती भविष्य में भी सुरक्षित बनी रहे। भारत इसमें अग्रणी भूमिका निभा सकता है। यही वजह है कि कॉप-14 की मेजबानी भारत को सौंपी गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में होने वाले इस उच्च स्तरीय सत्र पर दुनिया की निगाहें हैं। सम्मेलन की सुरक्षा में डेढ़ हजार जवानों की ड्यूटी लगाई गई है। कॉन्फ्रेंस हॉल में यूएन सुरक्षा एजेंसी और एसपीजी के मुस्तैद जवानों की चप्पे-चप्पे पर नजर है।