नई दिल्ली। ईरानी कुद्स फोर्स के चीफ मेजर जनरल कासिम सुलेमानी की मौत के बाद मिडिल ईस्ट के सभी देश डर के साए में जी रहे हैं। इराक ने भी इस कासिम पर हुए हमले को कड़ाई से लिया है और इसको राजनीतिक हत्या करार दिया है। इतना ही नहीं इराक की पार्लियामेंट में पीएम ने देश में मौजूद विदेशी सेनाओं को वापस चले जाने की भी अपील की है। उनका कहना है कि देश और क्षेत्र की शांति के लिए यही सबसे बेहतर विकल्प है। कासिम की मौत के बाद विभिन्न अमेरिकी ठिकानों पर हमले किए गए हैं।
क्या कहते हैं जानकार
मध्य पूर्व के लगातार खराब होते हालातों पर विदेश मामलों के जानकार कमर आगा ये तो मानते हैं कि हालात काफी हद तक खराब हो रहे हैं, लेकिन उनका ये भी कहना है कि खाड़ी युद्ध या वर्ल्ड वार के हालात नहीं बनने वाले हैं। उनका मानना है कि अमेरिका के पास ऐसा करने के लिए न तो उतना पैसा है और न ही इतना समय। इसके अलावा यदि अमेरिका ऐसा कदम उठाता भी है तो भी उससे अमेरिका का मकसद पूरा नहीं हो सकेगा। उनके मुताबिक यदि हम ईरानी सरकार सरकार को हटाकर दूसरी सरकार के बारे में सोच भी लें तब भी यह तय है कि वह अमेरिकी हितों की रक्षा करने वाली नहीं होगी।
अमेरिका मकसद में नहीं होगा पूरा
खाड़ी युद्ध की ही बात करें तो वहां पर अमेरिका का मकसद वहां की सत्ता से सद्दाम हुसैन को बेदखल करना था। लेकिन इसमें सफलता मिलने के बाद भी इराक में अमेरिका के मकसद को पूरा करने वाली सरकार नहीं बनी। ठीक वही हाल अफगानिस्तान में भी हुआ। वहां पर वर्षों से अमेरिका की मौजूदगी और तालिबान से लंबी लड़ाई के बाद अब अमेरिका उन्हीं से शांति वार्ता में जुटा है। वहीं तालिबान की बात करें तो उन्होंने अफगानिस्तान में किसी भी तरह से सीजफायर करने से साफ इनकार कर दिया है। ये इस बात का सुबूत है कि अमेरिका का मकसद पूरा नहीं होता है। इतना जरूर है कि वह अपनी कार्रवाई के जरिए मध्य पूर्व को अस्थिर करने की कोशिश जरूर कर सकता है।
तीन बड़ी वजह
मध्य पूर्व में अमेरिका के हस्तक्षेप के पीछे आगा कुछ बड़ी वजहों को मानते हैं। इनमें पहली वजह अमेरिका इस पूरे क्षेत्र में अपना वर्चस्व बढ़ाना चाहता है। दूसरी वजह मध्य पूर्व के तेल कारोबार में अमेरिकी कंपनियों का बड़ा शेयर। लेकिन वर्तमान में जो हालात अमेरिका की बदौलत मध्य पूर्व में बनें हैं उसमें प्रो अमेरिकन गवर्नमेंट का आना संभव दिखाई नहीं देता है। वहीं दूसरी तरह अब लोगों की सोच अमेरिका को लेकर काफी कुछ बदल गई है। इतना ही नहीं सऊदी अरब, कतर और बहरीन जहां पर प्रो अमेरिकन गवर्नमेंट है वहां पर भी लोगों की सोच अमेरिका के खिलाफ हो रही है। तीसरी वजह ईरान की वो कोशिश है जिसमें वह इस क्षेत्र में अपने साथ रूस और चीन को लाने की कोशिश कर रहा है। इन दोनों का ही अमेरिका से छत्तीस का आंकड़ा है।
अमेरिका में दो धड़े
ईरान और परमाणु डील को लेकर अमेरिका में भी दो धड़े बने हुए हैं। इनमें से एक का मानना था कि परमाणु डील को आगे चलना चाहिए था। ये सोच रखने वाले गुट का मानना था कि ईरान इतना कमजोर नहीं है जितना अमेरिका सोचता है। किसी बड़ी कार्रवाई के जवाब में ईरान अमेरिकी हितों को निशाना बना सकता है। यह अमेरिका के लिए घातक होगा। हालांकि इसमें कोई शक नहीं है कि ईरान को ही इस कार्रवाई की ज्यादा कीमत चुकानी पड़ेगी।