उरई। Water Conservation: कभी संघर्ष और साहस का प्रतीक कही जाने वाली बुंदेली धरती सूखे, जलसंकट और पलायन के लिए भले बदनाम हो, लेकिन विपरीत हालात से लड़ने का माद्दा यहां के लोगों में बरकरार है। इनमें एक हैं, परमार्थ संस्था के सचिव व बुंदेलखंड के भगीरथ कहे जाने वाले संजय सिंह, जो अथक प्रयासों से धरती को पानीदार बनाने में जुटे हैं। अपने गृह जनपद जालौन (उप्र) ही नहीं, ललितपुर, हमीरपुर और मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ व छतरपुर में जलसंरक्षण के लिए पानी पंचायत और जल सहेलियां बनाकर मिसाल बन चुके हैं। अभियान की गूंज अंतरराष्ट्रीय आयाम छू रही है। फ्रांस, इटली, जापान, ब्राजील, साउथ कोरिया, श्रीलंका के बुलावे पर वहां जाकर जलसंरक्षण के उपाय बताए।
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केंद्र सरकार उन्हें नेशनल वाटर मिशन अवार्ड से सम्मानित कर चुकी है। जालौन के माधौगढ़ ब्लॉक निवासी 47 वर्षीय संजय सिंह बताते हैं, पढ़ाई पूरी कर वर्ष 1996 में चार मित्रों संग परमार्थ संस्था बनाई। गांव-गांव घूमकर जन चर्चा कर जलसंकट से बंजर हुई जमीन तलाशी और प्रयास शुरू किए। वर्ष 2001 में हिम्मतपुरा गांव में वर्षा जल संचयन के लिए बंधे और प्रशासन के सहयोग से चेकडैम बनवाया। फसल लहलहाने लगी तो उत्साह बढ़ा। चंदेलकालीन तालाबों का जीर्णोद्धार कराया। उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश के विभिन्न जिलों में जनसहयोग से पांच सौ से अधिक चेकडैम, नहर-तालाब बनवाए। पानी पर पहला अधिकार महिलाओं का हो, इसलिए जल सहेलियां बनाई। इन प्रयासों ने गांवों की तस्वीर बदल दी।
नीति आयोग की चिंता
2018 में नीति आयोग ने कंपोजिट वाटर मैनेजमेंट इंडेक्स (सीडब्ल्यूएमआइ) जारी किया था। इस इंडेक्स में उसने देश में पानी की किल्लत का हाहाकारी दृश्य पेश किया। इस रिपोर्ट के अनुसार 2020 तक देश के 21 बड़े शहरों का भूजल स्तर खत्म हो जाएगा। इससे 10 करोड़ लोग गंभीर रूप से प्रभावित होंगे। इन बड़े शहरों में देश की राजधानी दिल्ली, बेंगलुरु, चेन्नई, हैदराबाद भी शामिल हैं। हालांकि सालों से कम बारिश, अकुशल पानी प्रबंधन तंत्र की मौजूदगी और अत्यधिक भूजल दोहन के चलते देश की 12 फीसद आबादी पहले से ही ‘डे जीरो’ की दशा में जीवनयापन कर रही है।
जीडीपी को छह फीसद चपत
सीडब्ल्यूएमआइ रिपोर्ट के अनुसार 2030 तक देश में पानी की मांग उपलब्धता के मुकाबले दोगुनी हो जाएगी। अभी ही हम मांग को पूरा नहीं कर पा रहे हैं तो उस स्थिति में तो देश के करोड़ों लोग पानी से बेहाल होंगे। पानी की इस हाहाकारी समस्या का प्रतिकूल असर देश की उत्पादकता पर पड़ेगा। लिहाजा देश के सकल घरेलू उत्पाद में छह फीसद की चपत लगेगी।
सरकार ने बनाया सरोकार
प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व वाली राजग सरकार ने पानी की इस भयावह तस्वीर को समय से पहले देख लिया और उस दिशा में प्रभावी कदम बढ़ाने शुरू कर दिए। जल संबंधी मामलों को लेकर उसने एकदम अलग जलशक्ति मंत्रालय का गठन किया। अपने जल जीवन मिशन के तहत सरकार देश के 256 जिलों में बारिश के पानी को जमा करने और उसका संरक्षण करने को लेकर कृत संकल्पित है। ये पहले चरण का लक्ष्य है। इसके अलावा देश के परंपरागत जल निकायों और तालाबों का पुनरुद्धार भी किया जाएगा। पानी के पुन: उपयोग को बढ़ावा दिया जाएगा।
जल निकायों को रिचार्ज करने में तेजी लाई जाएगी। वाटरशेड बनाए जाएंगे और वनीकरण प्रक्रिया को तेज की जाएगी। जल संसाधन और पेयजल व स्वच्छता मंत्रालयों को एकीकृत करके बनाए गए जल शक्ति मंत्रालय का लक्ष्य है कि 2024 तक राज्यों के सहयोग से हर ग्रामीण घर को नल से जल मुहैया कराए। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए केंद्र सरकार अगले कुछ साल तक 3.5 लाख करोड़ रुपये खर्च करने जा रही है।
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