नई दिल्ली: भारत-पाक के मौजूदा तवानों के बीच पठानकोट एयरबेस पर आठ लड़ाकू अपाचे हेलिकॉप्टरों की तैनाती कर दी गई है। इस मौके पर एयर चीफ मार्शल बीएस धनोवा खुद मौजूद रहे। उन्होंने बताया कि अपाचे के भारतीय वायु सेना में शामिल होने से सैन्य शक्ति को और मजबूती मिलेगी। ऐसा इसलिए है क्योंकि अपाचे हेलिकॉप्टर दुनिया का सबसे घातक लड़ाकू हेलिकॉप्टर है। यही वजह है कि अमेरिका समेत कई देश इसका इस्तेमाल करते हैं।
अपाचे हेलिकॉप्टर की डिजिटल कनेक्टिविटी और अत्याधुनिक सूचना प्रणाली इसे और खतरनाक बनाती है। इस हेलिकॉप्टर में जिस तरह की तकनीकों का इस्तेमाल किया गया है, वो इसे दुर्गम स्थानों पर भी कारगर मारक क्षमता और सटीक सूचनाएं उपलब्ध करती हैं। सघन पर्वतीय क्षेत्रों में ये सबसे कारगर हेलिकॉप्टर है, जो पहाड़ियों और घाटियों में छिपे दुश्मन को भी आसानी से तलाशकर सटीक निशाना साध सकता है। इसे कई तरह के बड़े बम, बंदूकों और मिसाइलों से लैस किया जा सकता है। जानें- क्यों अपाचे दुनिया का सबसे घातक हेलिकॉप्टर है?
बालाकोट के बाद शामिल हुआ था चिनूक
Apache Helicopter को वायुसेना ने मंगलवार को बड़े धूमधाम से पठानकोट एयरबेस पर एक समारोह में बेड़े में शामिलक किया। बेडे़ में शामिल किए जाने से पहले इन हेलिकॉप्टर को पानी की बौछारों के साथ वाटर केनन सेल्यूट दिया गया। इससे पहले वायु सेना ने अपने बेड़े में चिनूक हेलिकॉप्टरों (Chinook Helicopters) को शामिल किया था। चिनूक हेलिकॉप्टरों को फरवरी 2019 में हुए पुलवामा आतंकी हमले (Pulwama Terror Attack) के ठीक बाद वायुसेना के बेड़े में शामिल किया गया था। भारत ने इन दोनों हेलिकॉप्टरों को अमेरिका से खरीदा है और इन्हें भारतीय सेनाओं की भविष्य की जरूरतों के हिसाब से विशेषतौर पर तैयार किया गया है। दोनों हेलिकॉप्टरों से भारतीय सेनाओं की ताकत कई गुना बढ़ गई है। जानें- चिनूक हेलिकॉप्टर की खासियतें।
क्यों है दुनिया का सबसे घातक हेलिकॉप्टर
550 किलोमीटर है इस हेलिकॉप्टर की फ्लाइंग रेंज16 एंटी टैंक मिसाइल दाग उसके परखच्चे उड़ा सकता है ये हेलिकॉप्टरदुश्मन पर बाज की तरह हमला कर निकल जाने के लिए इसे तेज रफ्तार बनाया गया है।16 फ़ुट ऊंचे और 18 फ़ुट चौड़े अपाचे हेलिकॉप्टर को उड़ाने के लिए दो पायलट होना जरूरी है।30 एमएम की 1,200 गोलियां एक बार में भरी जा सकती हैं, हेलिकॉप्टर के नीचे लगी बंदूकों में।इस हेलिकॉप्टर के बड़े विंग को चलाने के लिए दो इंजन होते हैं। इस वजह से इसकी रफ्तार बहुत ज्यादा है।इसका डिजाइन ऐसा है कि ये आसानी से रडार को चकमा दे सकता है।
अपाचे हेलिकॉप्टर एक बार में 2:45 घंटे तक उड़ान भर सकता है।अपाचे हेलिकॉप्टर की डिजिटल कनेक्टिविटी व संयुक्त सामरिक सूचना वितरण प्रणाली अत्याधुनिक है।IAF के बेडे में शामिल अपाचे अपग्रेटेड वर्जन के हैं। इसकी तकनीक व इंजन को उन्नत किया गया है।यह मानव रहित हवाई वाहनों (यूएवी) को नियंत्रित करने की क्षमता से लैस हैबेहतरलैंडिंग गियर, क्रूज गति, चढ़ाई दर और पेलोड क्षमता में वृद्धि इसकी कुछ अन्य विशेषताएं हैं।युद्ध के मैदान की तस्वीर को कमांड सेंटर पर प्रसारित करने और वहां से प्राप्त करने की भी क्षमता है।अपाचे को अमेरिकी कंपनी बोइंग ने भारतीय सेना की जरूरत के हिसाब से विशेष तौर पर तैयार किया है।
अचूक निशाना
हवा में उड़ान भरते वक्त और दुश्मन को चकमा देते वक्त भी अपाचे हेलिकॉप्टर बहुत सटीक निशाना लगा सकता है। इसका सबसे बड़ा फायदा युद्ध क्षेत्र में होता है। अचूक निशाने की वजह से हेलिकॉप्टर के एम्युनेशन्स (गोला-बारूद) बर्बाद नहीं होते हैं और दुश्मन को ज्यादा से ज्यादा नुकसान पहुंचाया जा सकता है। यह दुश्मन की किलेबंदी को भेद कर उस पर सटीक हमला करने में भी सक्षम है।
कंपनी ने दो हजार से ज्यादा हेलिकॉप्टर बेचे
बोइंग कंपनी ने जनवरी, 1984 में अमेरिकी फौज को पहला अपाचे हेलिकॉप्टर सौंपा था। तब इस मॉडल का नाम था H-64A। तब से लेकर अब तक बोइंग 2200 से ज्यादा अपाचे हेलिकॉप्टर दुनिया भर में बेच चुकी है। भारत से पहले इस कंपनी ने अमेरिकी फौज के जरिये मिस्न, ग्रीस, इंडोनेशिया, इजरायल, जापान, क़ुवैत, नीदरलैंड, कतर, सऊदी अरब और सिंगापुर को भी अपाचे हेलिकॉप्टर बेचे हैं।
पायलट को ट्रेंड करने में खर्च होंगे 21 करोड़ रुपये
पांच साल तक अफगानिस्तान के संवेदनशील इलाकों में अपाचे हेलिकॉप्टर उड़ा चुके ब्रिटेन की वायु सेना में पायलट एड मैकी ने अपने एक साक्षात्कार में बताया था कि किसी नए पायलट को इस हेलिकॉप्टर को उड़ाने के लिए कड़ी और एक लंबी ट्रेनिंग लेनी होती है। इस ट्रेनिंग में काफी खर्च आता है। एक पायलट को अपाचे उड़ाने के लिए तैयार करने में तकरीबन 30 लाख डॉलर (21 करोड़ रुपये से ज्यादा) तक का खर्च करना पड़ता है। मैकी ने बताया था कि बेहत अत्याधुनिक और कई तरह के हथियारों से लैस इस हेलिकॉप्टर को नियंत्रित करने में काफी सतर्कता बरतनी पड़ती है। इसमें कई तरह के कंट्रोलर हैं।
ऐसे काम करते हैं दोनों पायलट
हेलिकॉप्टर को उड़ाने के लिए दो पायलटों की जरूरत होती है। मुख्य पायलट पीछे बैठता है और उसकी सीट थोड़ी ऊंची होती है, ताकि वह आसानी से आगे देख सके। मुख्य पायलट ही हेलिकॉप्टर को कंट्रोल करता है। आगे बैठे सेकेंड पायलट की जिम्मेदारी दुश्मन पर सटीक निशाना लगाने की होती है। मैकी के अनुसार उन्हें इस हेलिकॉप्टर को उड़ाने में 18 महीनों का कड़ा प्रशिक्षण प्राप्त करना पड़ा था।