डेंगू और चिकुनगुनिया, बचाव के लिए करें ये उपाय

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नई दिल्‍ली: बरसात के मौसम में गंदगी के कारण जीवाणुओं के बढ़ने से मच्छरों का प्रकोप कुछ ज्यादा ही बढ़ जाता है। मच्छरों के काटने से व्यक्ति डेंगू, फाइलेरिया, चिकुनगुनिया और इंसेफेलाइटिस आदि बीमारियों से ग्रस्त हो सकता है। मच्छरों से होने वाले रोगों का क्या है इलाज, इस संदर्भ में विशेषज्ञ डॉक्टरों से बातचीत के कुछ अंश…

डेंगू और चिकुनगुनिया का फर्क
  • चिकुनगुनिया में रक्तस्राव का जोखिम नहीं होता, जैसा डेंगू में प्लेटलेट्स की संख्या घटने के कारण उत्पन्न हो जाता है।
  • डेंगू के मामलों की तुलना में चिकुनगुनिया के रोगियों में जोड़ों का दर्द लंबा खिंचता है। विशेषकर बुजुर्ग लोगों में।

डेंगू

बरसात के मौसम में डेंगू बुखार का खतरा बढ़ जाता है। डेंगू एडीज एजिप्टी मच्छर द्वारा फैलता है। वर्षा के कारण अनेक जगहों पर बाढ़ आ जाने से जल भराव हो जाता है। जगह-जगह पानी संचित हो जाने के कारण इस मच्छर को पनपने का अवसर मिलता है। देश में लगभग 60 लाख लोग प्रतिवर्ष डेंगू के संक्रमण के घेरे में आ जाते हैं।

ऐसे पहचानें
मच्छर के काटने के पांच से दस दिनों के अंतराल में डेंगू बुखार के लक्षण प्रकट होने लगते हैं, इन लक्षणों में …

  • तेज सिरदर्द
  • तेज बुखार होना
  • आंखों के पिछले हिस्से में दर्द
  • जी मिचलाना व उल्टी आना
  • गर्दन तथा पीठ में दर्द
  • जोड़ों तथा मांसपेशियों मे ऐंठन और दर्द
  • त्वचा पर चकत्ते उभरना
  • शारीरिक कमजोरी व थकान

प्रथम अवस्था में रोगी को अधिक से अधिक पानी पीना चाहिए। पपीते के पत्ते के रस का सेवन प्लेटलेट्स की संख्या को बढ़ाने में मदद करता है। बुखार के उतरने के चार से नौ दिनों के बीच में प्लेटलेट्स की संख्या कम होती जाती है, यही वह समय है जब विशेष ध्यान रखने की जरूरत है, अन्यथा डेंगू हेमरेजिक बुखार और डेंगू शॉक सिंड्रोम की स्थिति बन सकती है। ऐसी स्थिति में डॉक्टर से परामर्श करना चाहिए। इस रोग में स्व-चिकित्सा घातक हो सकती है।

तब हो जाएं सचेत

  • खून में प्लेटलेट्स की संख्या कम होना
  • नाक, कान से खून रिसना, खूनी दस्त लगना और खून की उल्टी आना

बात इलाज की

लक्षणों के आधार पर इस रोग का इलाज किया जाता है। जैसे तेज बुखार होने पर रोगी को पैरासीटामोल दिया जाता है। अधिक-से-अधिक तरल पदार्थ लेना आवश्यक है। यदि व्यक्ति में प्लेटलेट्स की संख्या कम हो जाए या रक्तस्राव शुरू हो जाए तो प्लेटलेट्स रक्त के द्वारा चढ़ाए जाते हैं।

बचाव के उपाय

  • घर के बर्तनों और बाल्टी, जिनमें पानी जमा रहता है, उन्हें खाली कर उल्टा रखना चाहिए, ताकि पानी जमा न हो। यदि ऐसा संभव न हो तो इन बर्तनों को भली-भांति ढककर रखना चाहिए।
  • घर में लगे गमलों के पौधों में जरूरत से ज्यादा पानी न डालें, क्योंकि पानी अधिक एकत्र रहेगा तो डेंगू के मच्छरों के पनपने की आशंका बनी रहेगी।
  • बरसात के मौसम में मच्छरदानी का प्रयोग करें, विशेषकर शिशुओं को दिन में अधिक नींद आती है। इसलिए उन्हें मच्छरदानी में ही सुलाना चाहिए, क्योंकि यह मच्छर दिन में ही काटता है।
  • कपडे़ ऐसे पहनें, जिनसे बांह-पैर पूरी तरह ढक जाएं।
  • पूरी बांह की कमीज या पैंट आदि पहनें।
  • यदि टी शर्ट या हाफपैंट पहनें तो शरीर पर मच्छर प्रतिरोधी क्रीम का प्रयोग करें। ऐसा करना सुरक्षा की दृष्टि से आवश्यक है।
  • घर में यदि कूलर है तो निश्चित अवधि पर उसकी सफाई करें तथा पानी को बदलते रहें।
  • घर या आसपास कूड़ा एकत्र न करें। कूड़े के डिब्बे को ढककर रखें और प्रतिदिन कूड़ा साफ करें या करवाएं। अपने निकटवर्ती परिवेश को स्वच्छ रखें।

चिकुनगुनिया

चिकुनगुनिया का वायरस एडीज एजिप्टी मच्छर के काटने से फैलता है। एडीज एजिप्टी मच्छर दिन में काटता है। एक संक्रमित मच्छर से अन्य लोगों में यह वायरस फैल सकता है।

चिकुनगुनिया के प्रमुख लक्षण इस प्रकार हैं…

  • चिकुनगुनिया में तेज बुखार आता है। बुखार आमतौर पर 102 से 104 फॉरेनहाइट तक चढ़ता है।
  • तीन से सात दिनों के दौरान जोड़ों में गंभीर दर्द उत्पन्न होता है। जोड़ों का दर्द सप्ताह भर चल सकता है, लेकिन कुछ लोगों के मामलों में ऐसा दर्द एक साल या इससे अधिक समय तक भी बना रह सकता है।
  • आमतौर पर बुखार की शुरुआत के बाद दाने दिखते हैं। हथेलियों, तलवों और चेहरे पर भी दाने दिखाई पड़ सकते हैं। मांसपेशियों में भी दर्द हो सकता है।

ये करायी जाती जांचें हैं

चिकुनगुनिया का पता करने के लिए ‘आर एन ए पी सी आर’ नामक टेस्ट बीमारी के पहले सप्ताह में कराया जाता है। बीमारी के दूसरे सप्ताह के बाद ‘चिकुनगुनिया आई जी एम एंटीबॉडी एलाइजा’ नामक टेस्ट से इस बीमारी की डायग्नोसिस में मदद मिलती है।

सजगता बरतें

  • चिकुनगुनिया की रोकथाम के लिए टीका (वैक्सीन) उपलब्ध नहीं है। इसलिए मच्छरों से हरसंभव विधि से बचाव करना जरूरी है।
  • मच्छरों से बचाव के लिए सोते वक्त मच्छरदानी का इस्तेमाल करें। मच्छरों से बचाव के लिए मच्छर प्रतिरोधी क्रीम लगा सकते हैं।
  • पानी को घर में और आसपास जमा न होने दें।
  • घरों में बाल्टियों का पानी हर दिन बदलें।

लक्षणों के अनुसार इलाज

 चिकुनगुनिया वायरस के संक्रमण का कोई विशेष एंटीवायरल इलाज नहीं है। डॉक्टर लक्षणों के अनुसार ही रोगी का इलाज करते हैं। जैसे पीड़ित व्यक्ति को तेज दर्द और बुखार से राहत दिलाने के लिए पैरासीटामोल देते हैं। जोड़ों में होने वाले दर्द के लिए डॉक्टर कॉर्टीकोस्टेराइड्स नामक दवाएं देते हैं। पर्याप्त मात्रा में तरल पदार्थ देते रहना चाहिए।

फाइलेरिया

यह रोग प्रमुख रूप से क्यूलेक्स मच्छर के काटने से संक्रमित लार्वा के द्वारा एक मरीज से दूसरे मरीज में फैलता है। मुख्य तौर पर फाइलेरिया के दो प्रकार के संक्रमण होते हैं, एक वुचिरेरिया बैंक्राफ्टाई से और दूसरा बु्रजिया मलाई से। वुचिरेरिया बैंक्राफ्टाई के संक्रमण से होनेवाला बैंक्रोफटिएन फाइलेरिया देश में फाइलेरिया के कुल मामलों का लगभग 98 प्रतिशत है।

मर्ज के लक्षण

क्यूलेक्स के काटने के 16 से 18 महीनों के बाद बीमारी के लक्षण प्रकट होते हैं। फाइलेरिया के ज्यादातर लक्षण और संकेत वयस्क कृमि (वॉर्म) के लसीका तंत्र में प्रवेश के कारण पैदा होते हैं। कृमि द्वारा टिश्यूज को नुकसान पहुंचाने से लसीका द्रव का बहाव बाधित होता है, जिससे सूजन, घाव और संक्रमण पैदा होते हैं। पैर और पेड़ू सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले अंग हैं। फाइलेरिया का संक्रमण सामान्य शारीरिक कमजोरी, सिरदर्द, जी मिचलाना, हल्के बुखार और बार-बार खुजली के रूप में प्रकट होता है। फाइलेरिया के कारण हाइड्रोसील भी हो सकता है। फाइलेरिया आमतौर पर नंगे पैर चलनेवालों को होता है। इसलिए चप्पल या जूते पहनने से संक्रमण के जोखिम को कम किया जा सकता है।

समस्या है तो समाधान भी

फाइलेरिया के संक्रमण को नियंत्रित करने के लिए डाईएथाइलकार्बामैजीन साइटे्रट सबसे प्रचलित दवा है। यह दवा फाइलेरिया के कृमियों को अशक्त कर देती है, जिसके बाद रक्त की सफेद कोशिकाएं उन्हें नष्ट कर देती हैं। फाइलेरिया रोधी दो अन्य दवाएं भी हैं।

इंसेफेलाइटिस

जब संक्रमण के कारण मस्तिष्क में सूजन उत्पन्न हो जाती है, तो इस स्थिति को इंसेफेलाइटिस कहते हैं। ऐसे फैलता है मर्ज  यह रोग मच्छरों और कीट-पतंगों के काटने के बाद वायरस इंफेक्शन से फैलता है। बच्चों और वृद्धों को यह रोग अधिक होता है। जिन लोगों में रोग प्रतिरोधक तंत्र कमजोर होता है उन्हें इंसेफेलाइटिस होेने का खतरा सबसे अधिक रहता है।

जब ये समस्याएं सामने आएं

जुकाम, बुखार, सांस लेने में परेशानी, मिर्गी के दौरे, हाथ पैर में कमजोरी और अन्य लक्षण इस बात पर निर्भर करते हैं कि मस्तिष्क का कौन सा भाग प्रभावित हुआ है। इंसेफेलाइटिस में मरीज को बहोशी जल्दी आती है।

ऐसे फैलता है

आपका संपर्क ऐसे लोगों से हुआ हो, जो इस रोग से ग्रस्त हों या फिर ऐसे स्थानों पर इस रोग के ग्रस्त होने की आशंका ज्यादा होती है, जहां पर इस रोग के मरीज ज्यादा पाए जाते हैं। जैसे पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार के कुछ क्षेत्र आदि।

इन जांचों से पता चलता है

  • सेरिब्रल स्पाइनल फ्लूड (सी. एस. एफ.) की जांच।
  • एम. आर. आई. , ई. ई. जी. की जांच।
  • ब्लड टेस्ट।
  • कुछ विशेष मामले में ब्रेन की बॉयोप्सी।

लाइलाज नहीं है यह मर्ज

बीमारी की स्थिति के गंभीर होने पर अस्पताल में भर्ती करना आवश्यक है। इलाज उम्र के हिसाब से मरीज की स्थिति पर निर्भर करता है। इलाज के अंतर्गत एंटी वायरल, एंटीबॉयटिक दवाएं दी जाती हैं। बुखार को नियंत्रित करना जरूरी है। मिर्गी रोकना बहुत आवश्यक है। मस्तिष्क पर पड़ने वाले दबाव (प्रेशर) को कम करने की दवाएं दी जाती हैं।

बचाव के उपाय

अब इस रोग से बचाव के लिए वैक्सीन भी उपलब्ध है। मच्छरों से बचाव के लिए हर संभव उपाय अपनाएं। सफाई का विशेष ध्यान रखें। अच्छे खानपान से रोग प्रतिरोधक तंत्र मजबूत होता है।

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