नई दिल्ली: मिडिल ईस्ट में अमेरिका और ईरान की वजह से जो तनाव फैला हुआ है उसका असर दूर तक दिखाई दे रहा है। भारत भी इससे प्रभावित है। इसके अलावा चीन भी इससे अछूता नहीं है। इन दोनों का जिक्र इसलिए यहां करना जरूरी है क्योंकि एशिया की ये दो बड़ी ताकतें हैं। इसके अलावा दोनों की ही अपनी जरूरत का ज्यादातर तेल बाहर से खरीदना पड़ता है। इसमें भी मिडिल ईस्ट और खासतौर पर ईरान दोनों की जरूरत का तेल सप्लाई करता है। लेकिन ईरानी टॉप कमांडर कासिम सुलेमानी की अमेरिकी ड्रोन हमले में मौत के बाद जो तनाव फैला है उसकी वजह से रोज ही कच्चे तेल की कीमत में इजाफा देखा जा रहा है। तेल की कीमत में इजाफे का असर साफतौर पर इन देशों की अर्थव्यवस्था पर देखा जा सकता है।
ईरान का बड़ा खरीददार रहा है भारत
आपको बता दें कि ईरान पर लगे प्रतिबंधों से पहले तक भारत वहां से अपनी जरूरत का करीब 70 फीसद तेल खरीदता रहा है। लेकिन अमेरिकी प्रतिबंधों के बाद भारत ने वहां से तेल की खरीद बंद कर दी हे। वहीं तनाव की वजह से भी तेल की सप्लाई को लेकर भारत की चिंताएं किसी से छिपी नहीं रही हैं। इसके अलावा मिडिल ईस्ट के पूरे इलाके के इतिहास पर यदि गौर किया जाए तो यहां पर इस तरह का तनाव हाल में पैदा नहीं हुआ है, बल्कि कई दशकों पुराना है। अमेरिका और ईरान की ही यदि बात करें तो इनके बीच करीब सात दशक से दुश्मनी चल रही है। 1990 के खाड़ी युद्ध के बाद से पूरे मिडिल ईस्ट में तनाव लगातार बढ़ा ही है। ऐसे में भारत अब अपने तेल की जरूरत के लिए मिडिल ईस्ट पर अपनी निर्भरता खत्म करने की तरफ कदम बढ़ा रहा है।
अमेरिका-रूस बड़े साथी
इस दिशा में उसके दो बड़े साथी अमेरिका और रूस है। ईरान पर प्रतिबंध लगाने के बाद से ही अमेरिका से भारत को होने वाली कच्चे तेल की आपूर्ति में इजाफा हुआ है। बीते तीन वर्षों में अमेरिका भारत को क्रूड ऑयल की आपूर्ति करने वाला एक बड़ा देश बन गया है। इसके अलावा रूस भी अब इसी राह पर आगे बढ़ रहा है। माना जा रहा है कि आने वाले दो या तीन वर्षों में रूस भी भारत के लिए एक विश्वसनीय तेल आपूर्तिकर्ता देश बन जाएगा।
रूस से कच्चे तेल को लेकर बातचीत
मिडिल ईस्ट पर अपनी निर्भरता को खत्म करने के लिए भारत ने रूस से तेल आपूर्ति को लेकर बातचीत शुरू कर दी है। इस संबंध में पिछले सप्ताह दोनों देशों के विदेश मंत्रियों के बीच हुई बातीचीत काफी अहम रही है। इसमें दोनों ही देशों के बीच यह मुद्दा काफी अहम रहा था। इस संबंध में केंद्रीय कपेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान का वो बयान भी खास मायने रखता है जिसमें उन्होंने कहा था कि भविष्य में रूस भारत का एक बड़ा तेल साझेदार देश हो सकता है।
भारत को तेल के वैकल्पिक स्रोतों की जरूरत
आपको यहां पर ये भी बता दें कि मिडिल ईस्ट में बढ़े तनाव के बीच भारत को तेल के वैकल्पिक स्रोतों की जरूरत ज्यादा महसूस होने लगी है। वहीं ये भी खासा अहम है कि अमेरिका और रूस दोनों के ही पास कच्चे तेल के बड़े भंडार हैं। वहीं इन देशों से भविष्य में तनाव की वजह से तेल आपूर्ति बाधित होने की गुंजाइश लगभग न के ही बराबर है। कच्चे तेल के कारोबार और साझेदारी को बढ़ाने के लिए 2019 में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच बातचीत भी हुई थी। इस दौरान दोनों ही देशों के बीच एनर्जी सेक्टर को लेकर तीन बड़े समझौते भी हुए थे। भारत को कच्चे तेल की आपूर्ति की बात करें तो फिलहाल रूस इसमें काफी पीछे है।