![video](https://page3news.in/wp-content/uploads/2024/07/jal-sanrakshan_02-july-mp4-1.jpg)
प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में आई त्रिवेंद्र सरकार के सामने बेकाबू होते खर्चों पर काबू पाने तो आम आदमी को राहत पहुंचाने को ढांचागत विकास को धन की कमी पर पार पाने की चुनौती है। आमदनी कम और बढ़ते खर्च ने सरकार की परेशानी बढ़ा दी है। नतीजा सीधे विकास कार्यों के लिए धन संकट के रूप में सामने है।
शहर से लेकर गावों में सड़क, खड़ंजे बिछाने हों या पानी-बिजली को तरसते लोगों को राहत पहुंचानी हो, इन तमाम विकास कार्यों की नए बजट में हिस्सेदारी पुराने वित्तीय वर्ष 2017-18 की तुलना में 13.23 फीसद से घटकर मात्र 12.73 फीसद रह गई है। चिंता का दूसरा पहलू यह भी है कि केंद्र की मोदी सरकार आंख मूंदकर राज्य की भाजपा सरकार को मदद देने को तैयार नहीं है।
2017-18 के बजट में राज्य को अपनी अपेक्षाओं की तुलना में केंद्र से अपेक्षा से करीब डेढ़ हजार करोड़ कम मिलने का अनुमान है। जाहिर है कि राज्य सरकार को केंद्रपोषित योजनाओं में खर्च और उपयोगिता प्रमाणपत्र मुहैया कराए बगैर धन मिलना मुमकिन नहीं होगा। डबल इंजन का लाभ लेने के लिए राज्य के सिंगल इंजन को भी पहली पूरी कुव्वत के साथ छलांग लगानी होगी।
राज्य सरकार ने अपने दूसरे बजट को भी रखा करमुक्त
प्रदेश की भाजपा सरकार डबल इंजन के आगे नत मस्तक यूं ही नहीं है। दरअसल, जन अपेक्षाओं पर खरा उतरने का दबाव ही है कि राज्य सरकार ने अपने दूसरे बजट को भी करमुक्त रखा है। लेकिन, राज्य के आर्थिक संसाधनों में किसतरह इजाफा होगा, इसे लेकर बजट में रणनीति साफ नहीं है।
वर्ष 2018-19 के कुल बजट 45585.09 करोड़ का बड़ा हिस्सा 31.55 फीसद सिर्फ वेतन, भत्ते, मजदूरी समेत अधिष्ठान खर्च पर जाया हो रहा है। यह खर्च 14382 करोड़ से ज्यादा है। वहीं बड़े और छोटे निर्माण कार्यों के लिए महज 5803.89 करोड़ ही मिल रहे हैं।
यह धनराशि पिछले साल निर्माण कार्यों के लिए रखी गई धनराशि 5288.11 करोड़ से भले ही कुछ ज्यादा हो, लेकिन बजट आकार की तुलना में इसकी हिस्सेदारी कम हुई है। जाहिर है कि विकास कार्यों के लिए पाई-पाई के जुगाड़ के लिए राज्य सरकार को खासी मशक्कत करनी पड़ रही है।
![video](https://page3news.in/wp-content/uploads/2024/07/mahila-samagr-2-mnt-mp4-1.jpg)