देहरादून। Phooldei 2022: उत्तराखंड में फूल संक्रांति फूलदेई पर्व उल्लास के साथ मनाया जा रहा है। सोमवार को चैत की संक्रांति के मौके पर राज्यभर में यह पर्व मनाया जा रहा है। देहरी पूजन के लिए बच्चे घर-घर पहुंच रहे हैं।
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पुष्कर सिंह धामी ने बच्चों के साथ मनाया लोकपर्व
कार्यवाहक मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने सोमवार को मुख्यमंत्री आवास में बच्चों के साथ उत्तराखंड का लोकपर्व फूलदेई मनाया। धामी ने प्रकृति का आभार प्रकट करने वाले फूलदेई पर्व की प्रदेशवादियों को शुभकामनाएं दी व प्रदेश की सुख- समृद्धि की कामना की।
फूलदेई लोकपर्व पर धामी ने ईश्वर से कामना की कि वसंत ऋतु का यह पर्व सबके जीवन में सुख समृद्धि एवं खुशहाली लाए। इस अवसर पर आए बच्चों को उपहार भेंट किए गए।
पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि फूलदेई उत्तराखंड की संस्कृति एवं परम्पराओं से जुड़ा प्रमुख पर्व है। किसी राज्य की संस्कृति एवं परंपराओं की पहचान में लोक पर्वों की अहम भूमिका होती है। हमें अपने लोक पर्वों एवं लोक परम्पराओं को आगे बढ़ाने की दिशा में लागातार प्रयास करने होंगें। शिभूषण मैठाणी एवं पर्वतीय संस्कृति संरक्षण समिति के सहयोग से यह कार्यक्रम आयोजित किया गया।
ऋषिकेश: स्काउट गाइड से जुड़ी छात्राओं ने सभी के द्वार पर रखे फूल
ऋषिकेश में भी फूलदेई (Phooldei 2022) परंपरागत तरीके से मनाया गया। हरिश्चंद्र कन्या इंटर कालेज भारतीय स्काउट गाइड से जुड़ी छात्राओं ने नगर में भव्य कार्यक्रम आयोजित किया। फूलदेई की डोली के साथ छात्राएं हाथों में फूलों की टोकरी लिए सभी के द्वार पर फूल रखती नजर आई।
प्रधानाचार्य पूनम रानी शर्मा ने बताया कि लोक संस्कृति की रक्षा के लिए इस तरह के प्रमुख पर्व को आने वाली पीढ़ी तक पहुंचाने के लिए निरंतरता बनी रहनी चाहिए। गढ़वाल महासभा के अध्यक्ष डा. राजे सिंह नेगी ने हरिपुर कला स्थित अपने आवास पर बच्चों के साथ प्रकृति का आभार प्रकट करने वाला लोक पर्व फूलदेई मनाया।
उन्होंने बताया उत्तराखंड के अधिकांश क्षेत्रों में चैत्र संक्रांति से फूलदेई (Phooldei 2022) का त्योहार मनाने की परंपरा है। कुमाऊं और गढ़वाल के ज्यादातर इलाकों में आठ दिन तक यह त्योहार मनाया जाता है। वहीं, कुछ इलाकों में एक माह तक भी यह पर्व मनाने की परंपरा है।
बताया कि यह पर्व पूरे पर्वतीय अंचलों में धूमधाम से मनाया जाता है, जो हमारे दिनचर्या, ऋतुओं और उसके वैज्ञानिक पक्ष से जुड़ा है। किसी भी समाज के विकास के लिए वहां के रीति रिवाज और लोकपर्वों का भी विशेष योगदान होता है। इस शुभ पर्व पर हम सबको अपने नौनिहालों से घर की देहरी पर पुष्प वर्षा कराकर उन्हें शगुन तथा उपहार देकर इस त्यौहार को जीवंत बनाएं रखने के प्रयास करने चाहिए।
पिछले कुछ दशकों से हावी होती पश्चिमी सभ्यता के कारण उत्तराखंड ही नहीं सभी अंचलों में पारंपरिक त्योहारों और रीति-रिवाजों पर असर पड़ा है। ऐसे में फूलदेई के प्रति इतना उल्लास संतोष देता है कि हमारी लोक संस्कृति और परंपराएं हमें अपनी जड़ों से जुड़े रहने की प्रेरणा देती है।
‘फूलदेई छम्मा देई, दैणी द्वार भर भकार’
चैत्र की संक्रांति पर उत्तराखंड में इस पर्व को मनाया जाता है। इस दिन बच्चों द्वारा घरों की देहरी को फूलों से सजाया जाता है। घर की चौखट पर पूजन करते हुए ‘फूलदेई छम्मा देई’ कहकर मंगलकामना की जाती है। इस पर्व पर आस पड़ोस के बच्चों की भूमिका अहम होती है।
इन बच्चों को फुलारी कहा जाता है। इस दिन फुलारी टोकरी लेकर फूल चुनने जाती है। इसके बाद ‘फूलदेई छम्मा देई, दैणी द्वार भर भकार’ गीत को गाते हुए घर की देहरी का पूजन कर रंग-विरंगे फूलों से सजाती है और सुख व संपन्नता का आशीर्वाद देती है।
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