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नई दिल्ली,रक्षा मंत्रालय द्वारा आयोजित शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के पहले सैन्य सहयोग में पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल नहीं पहुंचा है। रक्षा अधिकारियों का कहना है, चूंकि पाकिस्तान एससीओ का सदस्य है, इसलिए उसे इस कार्यक्रम में आमंत्रित किया गया था।
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दो दिवसीय इस सम्मेलन में राजनाथ सिंह ने कहा कि
दो दिवसीय इस सम्मेलन में राजनाथ सिंह ने कहा कि हम जैव आतंकवाद (bio terrorism) के खतरे से निपटने के लिए निर्माण क्षमताओं के महत्व को रेखांकित करना चाहते हैं। जैव आतंक आज एक वास्तविक खतरा है। सशस्त्र बलों और इसकी चिकित्सा सेवाओं का मुकाबला करने के लिए सबसे आगे रहने की जरूरत है। वहीं, भारतीय वायु सेना प्रमुख बीएस धनोआ ने सशस्त्र बल चिकित्सा सेवाओं (एएफएमएस) की आवश्यकता पर जोर दिया ताकि प्रौद्योगिकी और विशेषज्ञता के मामले में गति बनी रहे।
बता दें कि 2017 में भारत एससीओ का सदस्य बना था। भारत पहली बार इसकी मेजबानी कर रहा है। सैन्य चिकित्सा के क्षेत्र में उत्कृष्ट पद्धतियों को साझा करने और क्षमताओं के निर्माण के लिए नई दिल्ली में इसका आयोजन किया गया है।
दो दिवसीय सम्मेलन में 27 देशों के प्रतिनिधि मंडल हिस्सा ले रहे हैं
दिल्ली में मानेकशॉ सेंटर में हो रहे इस दो दिवसीय सम्मेलन में 27 देशों के प्रतिनिधि मंडल हिस्सा ले रहे हैं। सम्मेलन में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और वायुसेना प्रमुख बीएस धनोआ भी मौजूद हैं। रक्षा मंत्रालय द्वारा एक बयान में कहा गया था कि शंघाई सहयोग संगठन के सदस्य देशों का पहला सैन्य चिकित्सा सम्मेलन 12-13 दिसंबर को दिल्ली में होगा। भारतीय सश्सत्र बल हेडक्वाटर्स इंटीग्रेटेड डिफेंस स्टाफ (एचक्यूआईडीएस) ने इस सम्मेनलन का आयोजन किया है। इसका लक्ष्य सैन्य चिकित्सा के क्षेत्र में उत्कृष्ट पद्धतियों को साझा करना और क्षमताओं का निर्माण करना है।
मिली जानकारी के अनुसार, अधिकारियों ने बताया कि इस सम्मेलन में भारतीय सशस्त्र बल त्वरित कार्रवाई चिकित्सा दल का भी प्रदर्शन करेगा साथ ही प्रतिनिधिमंडलों को आर्मी रिसर्च एंड रेफरल अस्पताल भी ले जाएगा।
क्या है शंघाई सहयोग संगठन
अप्रैल 1996 में शंघाई में एक बैठक हुई जिसमें चीन, रूस, कज़ाकस्तान, किर्गिस्तान और ताजिकिस्तान शामिल हुए। इस दौरान वह आपस में एक-दूसरे के नस्लीय और धार्मिक तनावों से निपटने के लिए सहयोग करने पर राजी हुए थे। तब इसे शंघाई-फाइव के नाम से जाना जाता था।
हालांकि असल रूप में एससीओ की स्थापना 15 जून 2001 में हुई थी। इसकी स्थापना तब चीन, रूस और चार मध्य एशियाई देशों कज़ाकस्तान, किर्ग़िस्तान, ताजिकिस्तान और उज़बेकिस्तान के नेताओं ने मिलकर की थी। नस्लीय और धार्मिक चरमपंथ से निपटने और व्यापार और निवेश को बढ़ाने के लिए समझौत हुआ था।
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