भारत की आजादी के संघर्ष की गवाह है अल्मोड़ा की ऐतिहासिक जेल

1912
अल्मोड़ा की ऐतिहासिक जेल

अल्मोड़ा। अल्मोड़ा की ऐतिहासिक जेल भारत की आजादी के संघर्ष की गवाह रही है। ब्रिटिश शासन काल में सन् 1872 में बनी इस ऐतिहासिक जिला जेल में स्वतन्त्रता संग्राम के अनेक रणबांकुरे रहे है। भारत के पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू, भारत रत्न गोविन्द बल्लभ पंत, खान अब्दुल गप्फार खान, हर गोविन्द्र पंत, विक्टर मोहन जोशी, कुमांऊ केशरी बद्री दत्त पांडे सहित अनेक स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी इस जेल में रहे है। वर्तमान में इस जेल की दशा खराब है। जेल जीर्ण क्षीर्ण होता जा रहा है। ऐतिहासिक यादों को समेटे इस जेल को घरोहर के रुप में संजोन की मांग लंबे समय से लोग करते आ रहे है। लेकिन अभी तक इस जेल का न तो जीर्णोधार किया गया है और न ही इसे धरोहर के रुप में संजोने के लिए किसी भी सरकार ने कोई ठोस योजना बनाई है।

सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा में स्थित इस ऐतिहासिक जेल में भारत की आजादी के लिए संर्घष कर रहे वीरों को यहां बंद किया गया था, ताकि उनकी आवाज को दबाकर स्वतंत्रता संग्राम के आंदोलन को खत्म किया जा सके। उत्तराखण्ड की सबसे पुरानी इस जेल में पंडित जवाहर लाल नेहरु, भारत रत्न पंडित गोविन्द बल्लभ पंत, खान अब्दुल गप्फार खां सहित अनेक वीर रहे। स्वतन्त्रता संग्राम की कहनी बयां करती इससे जुड़ी अनेक यादें यहा स्थित नेहरु वार्ड में रखी है। भारत की आजादी के आंदोलन का यह बहुत बड़ा स्मारक है। इस जेल में दो बार रहे पंडित जवाहर लाल नेहरू ने अपनी आत्मकथा भी लिखी। वहीं डिसकवरी आफ इंडिया के कुछ भाग इसी जेल में रहकर लिखे। इस जेल में स्वतन्ता संग्राम के सेनानियों की अनेक यादे संरक्षित है। जिनमें उनके खाने के बर्तन, चरखा, दीपक सहित पुस्तकालय भवन आदि है।

वर्तमान में जेल जीर्णक्षीर्ण 

शासन प्रशासन की अनदेखी के चलते जेल जीर्णक्षीर्ण होता जा रहा है। जेल की स्थिति इतनी खराब है कि वहां कैदियों और कर्मचारियों को अनेक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इस जेल की दिवारां सहित जेल के मुख्य गेट पर दुमंजिले में बना कर्मचारियों का आफिस इतना जीर्णक्षीर्ण हो चुका है कि वर्षा के मौसम में छत से पानी टपकता है जिससे वहां रखे अभिलेखों का खराब होने का अंदेशा बना रहता है। इतना ही नहीं इसकी दिवारों में भी दरार दिखने लगी है। सामाजिक कार्यकर्ता पीसी तिवारी कहते है कि इस जेल को धरोहर के रुप में संजोने के लिए सरकार को जल्द ही ठोक कार्ययोजना बनानी चाहिए। वहीं पूर्व राज्य मंत्री केवल सती बताते है कि नेहरू वार्ड की स्थिति ठीक नहीं है। जेल कि दिवारे अनदेखी के चलते कमजोर हो गई है। कई बार शासन से इस जेल को संरक्षित करने की मांग की जा चुकी है। इस ऐतिहासिक जेल को सुरक्षित करना आवश्यक है उन्होंने भी अल्मोड़ा की जेल को दूसरी जगह शिफ्ट कर इसे धरोहर के रुप में संरक्षित करने की मांग की है।

नेताओं की घोषणाएं धरातल पर कार्य नहीं कर पाई

अल्मोड़ा की ऐतिहासिक जेल को धरोहर के रुप में संरक्षित करने की घोषणा हमेशा नेता करते आये है। लेकिन नेताओं की घोषणाए धरातल पर कार्य करती नजर नहीं आई। यहीं कारण है कि आज तक इस जेल को धरोहर के रुप में संरक्षित नहीं किया जा सका। एक बार इस जेल को धरोहर के रुप मे संरक्षित करने के लिए जिला एवं जेल प्रशासन से जेल को दूसरी जगह बनाने के लिए जमीन तलासने के आदेश जरुर आये। जिला जेल प्रशासन ने उसके लिए जमीन की तलास कर शासन को इसकी जानकारी दी। लेकिन नई जेल के निमार्ण की फाईले प्रदेश के नौकरशाहों की फाईलो में कहीं दबी की दबी रह गयी।

कौन कब रहा इस जेल मे यह भी जाने

जवाहर लाल नेहरू दो बार रहे                  28-10-34 से 3-9-35 तक फिर 10-6-45 से 15-6-45 तक
हर गोविन्द पंत दो बार रहे                     25-8-30 से 1-9-30 तक फिर 7-12-40 से 4-10-41 तक
विक्टर मोहन जोशी                             25-1-32 से 8-2-32 तक
सीमान्त गाॅधी खान अब्दुल गफ्फार खाॅन       4-6-36 से 1-8-36 तक
भारत रत्न गोविन्द बल्लभ पंत                 28-11-40 से 17-10-41 तक
देवी दत्त पंत                                      6-1-41 से 24-8-41 तक
कुमाउॅ केसरी बद्री दत्त पाण्डे                    20-2-41 से 28-4-41
आचार्य नरेन्द्र देव                                10-6-45 से 15-6-45 तक
सैयद अली जहीर                                 25-4-39 से 8-6-39 तक

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