नई दिल्ली। MVA Crisis Hearing: शिवसेना के मुख्य सचेतक सुनील प्रभु की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार शाम को सुनवाई की। सुनवाई के दौरान देश की सर्वोच्च अदालत ने सुनील प्रभु के वकील अभिषेक सिंघवी की दलीलों पर दो-टूक कहा कि लोकतंत्र के इन मुद्दों को सुलझाने का एकमात्र तरीका सदन का पटल ही है। सुनील प्रभु ने याचिका के जरिए उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महा विकास आघाड़ी (एमवीए) सरकार को फ्लोर टेस्ट में जाने के राज्यपाल के निर्देश को चुनौती दी है।
Union Cabinet Decisions: जानिये कैबिनेट बैठक में क्या लिए गए निर्णय
सर्वोच्च अदालत ने पूछा, बड़ा सवाल
न्यायमूर्ति सूर्य कांत और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला की अवकाशकालीन पीठ ने सुनील प्रभु की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता एएम सिंघवी से यह भी पूछा कि आप बताइये कि शक्ति परीक्षण अयोग्यता प्रक्रिया को कैसे प्रभावित कर सकता है… या अयोग्यता की कार्यवाही में अध्यक्ष की शक्तियों में यह हस्तक्षेप कैसे कर सकता है। हमारी समझ तो यह है कि लोकतंत्र के इन मुद्दों को सुलझाने का एकमात्र तरीका सदन का पटल ही है…
बागी गुट की दलीलें
एकनाथ शिदे की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता नीरज किशन कौल ने कहा- फ्लोर टेस्ट राज्यपाल के विवेकाधिकार का क्षेत्र है। जब तक राज्यपाल के निर्णय को घोर दुर्भावनापूर्ण या तर्कहीन नहीं माना जाता, तब तक गवर्नर के निर्देश कोई हस्तक्षेप संभव नहीं है।
उद्धव गुट की दलीलें
शिवसेना के मुख्य सचेतक सुनील प्रभु के वकील ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि राज्यपाल का पत्र जो फ्लोर टेस्ट को लेकर है। इसमें कहा गया है कि 28 जून को विपक्ष के नेता ने राज्यपाल से मुलाकात की। आज सुबह हमें इसके जरिए कल यानी गुरुवार को फ्लोर टेस्ट कराए जाने के बारे में जानकारी मिली। मौजूदा वक्त में राकांपा के दो सदस्य कोरोना से पीड़ित हैं और एक कांग्रेस विधायक देश से बाहर है।
सुनील प्रभु के वकील ने आगे कहा- यह बिल्कुल वैसा ही है जैसा चुनाव आयोग तुरंत चुनाव कराने का निर्देश जारी कर दे। यह अफरातफरी में चुनाव कराने की तरह है जहां मतदाताओं में मृत लोग या ऐसे लोग शामिल होंगे जो बाहर चले गए हैं। यदि फ्लोर टेस्ट यह निर्धारित किए बिना किया जाता है कि क्या ए, बी, सी और डी अयोग्य हैं, तो यह निरर्थक होगा…
सुनील प्रभु के वकील ने यह भी कहा कि फ्लोर टेस्ट (MVA Crisis Hearing) यह निर्धारित करता है कि कौन सी सरकार लोगों की इच्छा का प्रतिनिधित्व करती है। सही बहुमत का पता लगाने के लिए फ्लोर टेस्ट कराया जाता है लेकिन इसमें योग्य लोग शामिल होने चाहिए। ऐसे में जब एक तरफ सुप्रीम कोर्ट ने अयोग्यता की कार्यवाही पर रोक लगा रखी है तो दूसरी तरफ विधायक कल मतदान में हिस्सा लेने जा रहे हैं, यह तो सीधा विरोधाभास है।
सुनील प्रभु के वकील अभिषेक सिंघवी ने कहा कि यह न्यायालय अयोग्यता कार्यवाही की वैधता पर विचार कर रहा है। इस मामले में 11 जुलाई को अगली सुनवाई होनी है। ऐसे में अयोग्यता का मसला फ्लोर टेस्ट से सीधे जुड़ा हुआ है।
सुनील प्रभु के वकील अभिषेक सिंघवी ने कहा- जो लोग पक्ष बदल चुके हैं और दलबदल कर चुके हैं, वे लोगों की इच्छा का प्रतिनिधित्व नहीं करते। क्या राज्यपाल सुप्रीम कोर्ट पर भरोसा नहीं कर सकते? कल फ्लोर टेस्ट नहीं हुआ तो क्या आसमान टूट जाएगा?
अधिवक्ता सिंघवी ने कहा- जहां मामला सुप्रीम कोर्ट (MVA Crisis Hearing) के समक्ष विचाराधीन है और फैसले का इंतजार कर रहा है, ऐसे में कोविड से ठीक हुए राज्यपाल अगले दिन विपक्ष के नेता के साथ बैठक करने के बाद फ्लोर टेस्ट की मांग कैसे कर सकते हैं?
सिंघवी ने कहा कि फ्लोर टेस्ट की अनुमति देने का मतलब दसवीं अनुसूची को मृत पत्र बनाना होगा। जिन लोगों ने पाला बदल लिया है, वे लोगों की इच्छा को नहीं दर्शाते हैं।
शिवसेना नेता सुनील प्रभु के वकील सिंघवी ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि कोर्ट को तब तक फ्लोर टेस्ट नहीं होने देना चाहिए जब तक डिप्टी स्पीकर बागी विधायकों के खिलाफ अयोग्यता याचिका पर फैसला नहीं कर लेते…
सुप्रीम कोर्ट ने पूछे सवाल
सुप्रीम कोर्ट ने सुनील प्रभु के वकील से पूछा- अयोग्यता का मामला हमारे पास लंबित है, यह बात तो ठीक है लेकिन इसका फ्लोर टेस्ट से क्या लेना देना है, कृपया स्पष्ट करें।
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने यह भी पूछा- अयोग्यता का मामला हमारे सामने लंबित है, हम तय करेंगे कि नोटिस वैध है या नहीं..? लेकिन यह फ्लोर टेस्ट को कैसे प्रभावित कर रहा है..? यह बात तो बताइये…
सुप्रीम कोर्ट ने सुनील प्रभु की ओर से पेश हुए वकील अभिषेक सिंघवी से पूछा- क्या आप इस बात पर विवाद कर रहे हैं कि आपकी पार्टी के 34 सदस्यों ने पत्र पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं?
सिंघवी का जवाब- कोई सत्यापन नहीं है। सरकार ने एक हफ्ते तक पत्र रखा और केवल तभी कार्रवाई की जब लीडर आफ फ्लोर उनसे मिले। मौजूदा वक्त में सरकार की हर कार्रवाई न्यायिक समीक्षा के अधीन है…
सुप्रीम कोर्ट की दो-टूक, सदन का पटल ही बेहतर तरीका
सिंघवी ने सुप्रीम कोर्ट से कहा- कोर्ट को तब तक फ्लोर टेस्ट नहीं होने देना चाहिए जब तक डिप्टी स्पीकर बागी विधायकों के खिलाफ अयोग्यता याचिका पर फैसला नहीं कर लेते… इस प सुप्रीम कोर्ट ने दो-टूक कहा कि हमारी समझ यह है कि लोकतंत्र के इन मसलों को सुलझाने का एकमात्र और ठोस तरीका सदन का पटल ही है।
सुबह ऐसे चली सुनवाई
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जेबी पारदीवाला की अवकाशकालीन पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता एएम सिंघवी की दलीलों पर गौर किया कि राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी द्वारा गुरुवार को सुबह 11 बजे बहुमत साबित करने के लिए एमवीए सरकार को दिए गए फैसले के मद्देनजर तत्काल सुनवाई की जरूरत है। पीठ ने कहा- हम शाम पांच बजे सुनवाई करेंगे। कृपया सुनिश्चित करें कि सभी संबंधित पक्षों को दोपहर तीन बजे तक आपत्ति की प्रतियांं उपलब्ध करा दी जाएं।
फ्लोर टेस्ट पर रोक की लगाई थी गुहार
जैसे ही पीठ ने दिन के लिए कार्यवाही शुरू (MVA Crisis Hearing) की, सिंघवी ने राज्यपाल के आदेश को अवैध बताते हुए फ्लोर टेस्ट पर रोक लगाने के लिए याचिका पर तत्काल सुनवाई की मांग की। अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि यदि फ्लोर टेस्ट कराया जाता है तो अयोग्यता का सामना कर रहे विधायकों के मतों की गिनती भी की जाएगी जो गलत है। फ्लोर टेस्ट में ऐसे नाम शामिल नहीं हो सकते हैं जो अयोग्य हों। वहीं सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि उन्हें शाम को पांच बजे मामले की सुनवाई पर कोई आपत्ति नहीं है।
Disaster Management: की मुख्यमंत्री धामी ने की समीक्षा