नई दिल्ली। देश में एक दशक के बाद भी रोजाना होने वाले सड़क हादसों में किसी तरह से अंकुश नहीं लग पा रहा है। सड़क हादसों में कमी होने की बजाय बढ़ोतरी होती जा रही है। साल 2008 में जहां रोजाना मरने वालों की संख्या लगभग 300 थी वो अब बढ़कर 500 हो गई है। दिनोंदिन बढ़ते वाहनों की संख्या भी इन हादसों के लिए एक तरह से जिम्मेदार है। एक दूसरा बड़ा कारण गलत ड्राइविंग और ओवर स्पीडिंग है। जिसके कारण हादसों पर दुघर्टनाओं पर रोक नहीं लग पा रही है।सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय की ओर से जारी किए गए आंकड़ों से ये चीजें स्पष्ट भी हो रही हैं कि सड़क दुघर्टनाओं में जान गंवाने वालों की संख्या किसी भी तरह से कम नहीं हो रही है। सरकार जागरुकता के अभियान तो चला रही है मगर उसका नतीजा नहीं दिख रहा है। वाहन चालक तमाम नियमों को दरकिनार करते हुए ओवर स्पीडिंग करते हैं और हादसे का शिकार होते हैं।
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साल 2008 से 2018 तक में नहीं आई कमी
सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय की ओर से जारी किए गए आंकड़ों के हिसाब से एक दशक के बाद भी अब तक सड़क हादसों में किसी तरह से कमी नहीं आई है। 2008 में जहां सड़क हादसों में मरने वालों की संख्या 1.20 लाख थी वो साल 2018 में बढ़कर 1.49 लाख तक पहुंच गई।
एक्सप्रेस वे और व्यस्त रास्तों पर होते रहते एक्सीडेंट
सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय परिवहन के बेहतर साधनों के लिए सड़कों का चौड़ीकरण कर रहा है और एक्सप्रेस वे का निर्माण कर रहा है। इन पर वाहनों की स्पीड की लिमिट निर्धारित है मगर नवयुवक इन रास्तों पर पहुंचने के बाद नियम कानूनों की धज्जियां उड़ाते नजर आ जाते हैं। जरा सी असावधानी से एक्सीडेंट हो जाता है और जान चली जाती है। नोएडा-ग्रेटर नोएडा एक्सप्रेस वे, दिल्ली-आगरा एक्सप्रेस वे पर आए दिन कोई न कोई एक्सीडेंट होता ही रहता है। यहां पर भी स्पीड की लिमिट है, विभाग ने कैमरे लगाए हैं मगर उसके बाद भी रोजाना सैकड़ों लोग नियम तोड़ते हैं।
रात में होती है ज्यादा संभावना
अक्सर रात के समय वाहन दुघर्टनाएं अधिक होती है। दरअसल हाइवे पर स्ट्रीट लाइटें नहीं होती है, कई बार ये भी देखने में आता है कि रात के समय कोई जंगली जानवर सड़क से निकलकर जा रहा होता है, उसको बचाने के चक्कर में वाहन चालक अपना संतुलन खो देते हैं और एक्सीडेंट का शिकार हो जाते हैं।
कोहरे के दौरान हादसे
दिसंबर और जनवरी के माह में कोहरा अधिक हो जाता है, ऐसे में हाइवे पर बहुत दूर तक वाहन दिखाई नहीं देते हैं। ऐसे में तेज रफ्तार से चलने वाले वाहन चालक सड़क किनारे खड़े वाहनों में ही पीछे से जाकर टकरा जाते हैं। दिसंबर और जनवरी के माह में ऐसे हादसों की बाढ़ सी आ जाती है। इस तरह के हादसों पर रोक के लिए प्रशासन की ओर से सड़क किनारे बड़े वाहनों की पार्किंग बंद कराई गई मगर फिर भी हादसे हो ही रहे हैं।
रैश ड्राइविंग से ज्यादा हादसे
देश के सभी प्रमुख बड़े शहरों में रैश ड्राइविंग की वजह से भी लोगों की जान जाती है। मुंबई, दिल्ली जैसे शहरों में तो सप्ताह में एक से दो हादसे इस तरह के हो ही जाते हैं। इन हादसों में लग्जरी वाहन से टकराने वालों को ही मौत होती है। बीएमडब्ल्यूए, ऑडी, रेंज रोवर जैसी गाड़ियों से इस तरह के एक्सीडेंट होते रहते हैं।
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