पर्यावरण संरक्षण के लिए एकत्रित फंड के दूसरे मदों मे इस्तेमाल करने पर मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने गहरी नाराजगी जताई। कोर्ट ने कहा कि कार्यपालिका हमें मूर्ख बना रही है। एकत्रित फंड के प्रति राज्य सरकारों के रवैये पर नाखुशी जाहिर करते हुए कोर्ट ने कहा कि उन्होंने कार्यपालिका पर भरोसा किया लेकिन उसने कुछ नहीं किया। अधिकारी काम नहीं करते। जब कोर्ट कुछ कहता है तो कहा जाता है कि अदालत सीमा लांघ रही है।
ये तल्ख टिप्पणियां न्यायमूर्ति मदन बी लोकूर व न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की पीठ ने वायु प्रदूषण और पर्यावरण संरक्षण से जुड़े मामलों की सुनवाई के दौरान कीं। मालूम हो कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर कम्पन्सेटरी अफारेस्टेशन फंड (जिसे कैम्पा फंड कहा जाता है), ग्रीन सेस जिसे ईसीसी (इन्वायरमेंटर कंसरवेशन सेस) आदि एकत्रित होते हैं जिसे पर्यावरण संरक्षण के लिए एकत्र किया जाता है।
मंगलवार को इन फंडों के दूसरे मदों में खर्च किये जाने पर कोर्ट नाराज हुआ। पीठ ने कहा कि ये पैसा पर्यावरण संरक्षण और जनउद्देश्य मे खर्च होना था लेकिन ऐसा नहीं हुआ। कोर्ट ने कार्यपालिका पर भरोसा किया। कमेटियां बनाईं उन्हें शक्तियां दीं। फंड एकत्रित हुआ लेकिन अधिकारी कुछ करना ही नहीं चाहते। पैसा दूसरे मद में खर्च हो रहा है। इस पर केन्द्र सरकार की ओर से पेश एएसजी नंदकरणी ने कहा कि कोर्ट बताए कि पैसा कहां खर्च किया जाए और कहां खर्च न किया जाए। इस दलील पर पीठ और नाराज हुई।
सभी राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों का आंकड़ा करें एकत्र
कहा कि ये कोर्ट का काम नहीं है। कोर्ट कोई पुलिस नहीं है जो कि यह कह कर पकड़े कि तुमने नियम तोड़ा है। स्थिति बहुत निराशाजनक है। जस्टिस लोकुर ने कहा कि कार्यपालिका हमें मूर्ख बना रही है। एक तरफ कोर्ट से कहा जाता है कि वह बताए कि क्या किया जाए और जब कोर्ट कुछ कहता है तो कहा जाता है कि अदालत सीमा अतिक्रमण कर रही है। पीठ ने केन्द्रीय पर्यावरण सचिव से कहा कि वे सभी राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों का आंकड़ा एकत्र करें जिसमें ये बताया जाए कि इस मद मे कुल कितना फंड एकत्रित हुआ है और उसका किस मद मे कैसे उपयोग किया जाएगा।