सुप्रीम कोर्ट ने बैंक धोखाधड़ी रोकने और आतंकियों को पकड़ने में आधार से मदद मिलने की केन्द्र सरकार की दलीलों से असहमति जताते हुए टिप्पणी में कहा कि आधार हर मर्ज का इलाज नहीं है। आखिर आधार से बैंक धोखाधड़ी कैसे रुक जाएगी। वहां पहचान का संकट नहीं होता। बैंक को मालूम होता है कि वह किसे कर्ज दे रहा है। कोर्ट ने कहा कि बैंक धोखाधड़ी कर्मचारियों की मिलीभगत से होती है। इसके अलावा कोर्ट ने कुछ आतंकियों को पकड़ने के लिए पूरी जनसंख्या का मोबाइल फोन आधार से जोड़े जाने पर भी सवाल उठाया।
सुप्रीम कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ आजकल आधार कानून की वैधानिकता पर सुनवाई कर रही है। केन्द्र सरकार की ओर अटार्नी जनरल आधार की तरफदारी में पक्ष रख रहे हैं। गुरुवार को बहस के दौरान जब अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि आधार से बैंक धोखाधड़ी रुकेगी। पीठ के न्यायाधीशों ने सरकार की इस दलील से असहमति जताते हुए कहा कि उन्हें नहीं लगता कि आधार से बैंक धोखाधड़ी रुकेगी। वहां पहचान का संकट तो होता नहीं। बैंक को मालूम होता है कि वह किसे कर्ज दे रहा है। कर्ज कंपनी नियमों के मुताबिक दिया जाता है। वहां आधार कैसे मदद करेगा।
बैंक कर्मचारियों की मिलीभगत से होती है धोखाधड़ी
कोर्ट ने कहा कि बैंक धोखाधड़ी कर्मचारियों की मिलीभगत से होती है। कोर्ट की इन टिप्पणियों पर अटार्नी जनरल ने कहा कि हो सकता है कि कोर्ट नीरव मोदी की बात कर रहा हो लेकिन आधार बेनामी संपत्ति और बेनामी लेनदेन को लेकर कारगर है। कोर्ट ने कुछ आतंकियों को पकड़ने के लिए सभी का मोबाइल फोन आधार से जोड़े जाने पर भी सवाल उठाए। जिसके जवाब में अटार्नी जनरल का कहना था कि इससे आतंकवादी पकड़े जा सकते हैं। कोर्ट ने कहा कि क्या आतंकी खुद सिम खरीदने जाते हैं।