बिहार में सत्ता बदलते ही यूपी में अखिलेश यादव को लगे दो झटके

1262
akhilesh-yadav

लखनऊ। बिहार में महागठबंधन को तहस-नहस होने के बाद अब उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के भीतर फूट पड़ती नजर आ रही है। पार्टी के दो विधानपरिषद के सदस्यों ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया है।

सपा के प्रवक्ता बुक्कल नवाब ने अपने पद से इस्तीफा देकर पार्टी को बड़ा झटका दे दिया है। बुक्कल नवाब के अलावा दो अन्य एमएलसी ने भी पार्टी से इस्तीफा दे दिया है।

मधुकर जेटली भी दे सकते हैं इस्तीफा

यहां गौर करने वाली बात है कि बुक्कल नवाब ने भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह से मुलाकात के चंद घंटों बाद ही अपने पद से इस्तीफा दे दिया। बुक्कल नवाब के अलावा एमएलसी यशवंत सिंह ने भी विधान परिषद के सभापति रमेश यादव को अपना इस्तीफा सौंप दिया है।

इसके साथ ही कयास लगाए जा रहे हैं कि मधुकर जेटली भी अपने पद से इस्तीफा दे सकते हैं, जेटली को मुलायम सिंह यादव का करीबी माना जाता है। खबरों की मानें तो तीनों ही नेता भाजपा का दामन थाम सकते हैं।

सपा के भीतर घुटन महसूस हो रही थी

सपा से इस्तीफा देने के बाद बुक्कल नवाब ने कहा कि एक साल से हम बहुत ज्यादा घुटन महसूस कर रह हैं, आज की स्थिति बड़ी विस्फोटक है, समाजवादी को पार्टी नहीं कहना चाहिए। उन्होंने कहा कि पार्टी नहीं समाजवादी अखाड़ा लिखना चाहिए। भाजपा अच्छा काम कर रही है, मोदीजी ने जो सबका साथ सबका विकास का नारा दिया है वह अच्छा है। अगर वो बुलाएंगे तो हम जाएंगे।

राम मंदिर अयोध्या में ही बनना चाहिए

राम मंदिर अयोध्या में नहीं बनेगा तो क्या पाकिस्तान में बनेगा। राम मंदिर के मुद्दे पर कंधे से कंधा मिलाकर साथ हैं, भगवान श्रीराम का मंदिर अयोध्या में ही बनेगा। यह मंदिर पाकिस्तान, इंग्लैंड या हॉलैंड में तो बनेगा नहीं।

इश्वर चाहेगा तो राम मंदिर अयोध्या में बनेगा। उन्होंने कहा कि मैंने दो साल पहले ही कहा था राम मंदिर अयोध्या में बनना चाहिए।
लखनऊ पहुंचते ही सपा के भीतर तोड़फोड़

गौर करने वाली बात यह है कि आज भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह आज यूपी के तीन दिवसीय दौरे पर आए हैं। उनके लखनऊ एयरपोर्ट पहुंचते ही सपा के भीतर खींचतान शुरू हो गई और पार्टी के तीन नेताओं ने पार्टी का दामन छोड़ दिया है। अमित शाह केशव प्रसाद मौर्या और योगी आदित्यनाथ पर बड़ा फैसला ले सकते हैं।

दोनों ही नेता मौजूदा समय में लोकसभा के सदस्य हैं और इन्हें छह महीने के भीतर यूपी के किसी एक सदन का सदस्य होना अनिवार्य है। लिहाजा इन्हें किस संसदीय क्षेत्र से चुनावी मैदान में उतारा जाए इस पर फैसला होगा।

Leave a Reply