कर्नाटक: कर्नाटक में भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष बी एस येदियुरप्पा चौथी बार राज्य के मुख्यमंत्री बन गए हैं। मंगलवार को एच डी कुमारस्वामी की सरकार गिरने के दो दिन बाद ही राज्यकर्नाटक राज्य के मुख्यमंत्री बन गए हैं। मंगलवार को एच डी कुमारस्वामी की सरकार गिरने के दो दिन बाद ही राज्यपाल वजुभाई ने शुक्रवार को येदियुरप्पा को कर्नाटक के 25वें सीएम के रूप में शपथ दिलाई। फिलहाल सिर्फ येदियुरप्पा ने ही शपथ ली है और किसी भी मंत्री को शपथ नहीं दिलाई गई है।
सलाह मशविरा करने के बाद कैबिनेट के सदस्यों पर करेंगे फैसला
शपथ ग्रहण समारोह से पहले येदियुरप्पा ने कहा कि वह पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह से सलाह मशविरा करने के बाद कैबिनेट के सदस्यों पर फैसला करेंगे। सरकार बनाने के बाद उन्हें 31 जुलाई तक सदन में बहुमत साबित करना होगा। बताते चलें कि कर्नाटक विधानसभा के सदस्यों की संख्या अभी 222 है और 14 विधायकों के इस्तीफे पर स्पीकर को फैसला लेना है।
112 विधायकों के समर्थन की आवश्यकता
येदियुरप्पा को सदन में सभी सदस्यों के उपस्थित होने और वोट करने की स्थिति में 112 विधायकों के समर्थन की आवश्यकता है। ऐसे में जरूरी है कि बागी विधायक येदियुरप्पा की सरकार के समर्थन में या तो वोट डालें या फिर सदन की कार्यवाही में हिस्सा ना लें। ऐसे में सदन का संख्याबल कम हो जाएगा और येदियुरप्पा सदन में बहुमत साबित कर लेंगे। बीएस येदियुरप्पा पहली बार 12 नवंबर 2007 को मुख्यमंत्री बने लेकिन सात दिन में ही उनकी सरकार गिर गई। दूसरी बार 30 मई 2008 को वह फिर से मुख्यमंत्री बने और 31 जुलाई 2011 तक पद पर बने रहे।
हालांकि, कार्यकाल पूरा करने से पहले ही उन्हें इस्तीफा देना पड़ा और उनकी जगह डी वी सदानंद गौड़ा सीएम बन गए। 2018 में विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद जब बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी तो येदियुरप्पा फिर से सीएम बने लेकिन दो दिन में ही इस्तीफा दे दिया। अब जेडीएस-कांग्रेस की सरकार गिरने के बाद वह चौथी बार सीएम बने हैं।
15 साल की उम्र में थामा आरएसएस का हाथ
75 वर्षीय बूकानाकेरे सिद्धलिंगप्पा येदियुरप्पा महज 15 साल की उम्र में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) में शामिल हुए थे। जनसंघ से अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत कर वह अपने गृहनगर शिमोगा जिले के शिकारीपुरा में बीजेपी के अगुवा रहे। 1970 के दशक की शुरुआत में वह शिकारीपुरा तालुक से जनसंघ प्रमुख बने। वर्तमान में शिमोगा लोकसभा सीट का प्रतिनिधित्व कर रहे येदियुरप्पा 1983 में इस सीट से पहली बार विधायक चुने गए थे। फिर इस सीट का उन्होंने पांच बार प्रतिनिधित्व किया। पिछले साल विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद येदियुरप्पा सिर्फ दो दिन के मुख्यमंत्री बने थे।
पिछले साल मई महीने में आए नतीजों के बाद बीजेपी 104 विधायकों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। बीएस येदियुरप्पा ने 17 मई 2018 को सीएम पद की शपथ ली और दावा किया कि उनके पास बहुमत का आंकड़ा है। मगर 19 मई को बहुमत परीक्षण से ठीक पहले इस्तीफा दे दिया। बहुमत ना मिलने पर बीजेपी की सरकार दो ही दिन में गिरने के बाद 78 सीटों वाली कांग्रेस और 37 सीटें जीतने वाली जेडीएस ने गठबंधन कर लिया और सरकार गठन के बाद जेडीएस विधायक दल के नेता एचडी कुमारस्वामी मुख्यमंत्री बने थे।
आपातकाल के दौरान जेल गए थे येदियुरप्पा
लिंगायत समुदाय के इस दिग्गज नेता को किसानों की आवाज उठाने के लिए जाना जाता है। अपने चुनावी भाषणों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इसका बार-बार जिक्र भी कर चुके हैं। कला संकाय में स्नातक येदियुरप्पा देश में इमर्जेंसी के दौरान जेल भी गए। उन्होंने समाज कल्याण विभाग में क्लर्क की नौकरी करने के बाद अपने गृहनगर शिकारीपुरा में एक चावल मिल में भी इसी पद पर काम किया था। इसके बाद शिमोगा में उन्होंने हार्डवेयर की दुकान खोली।दिलचस्प यह है कि साल 2004 में भी 2018 की तरह ही स्थिति सामने आई थी। तब राज्य में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी के सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरने के बाद भी येदियुरप्पा मुख्यमंत्री नहीं बन सके थे लेकिन तब कांग्रेस और पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा की जेडी (एस) के गठजोड़ की वजह से यह संभव नहीं हो सका था।
तब राज्य की सरकार कांग्रेस के धरम सिंह के नेतृत्व में बनी थी। अपनी राजनीतिक दूरदर्शिता के लिए पहचाने जाने वाले येदियुरप्पा ने कथित खनन घोटाले में लोकायुक्त द्वारा मुख्यमंत्री धरम सिंह पर अभियोग लगाए जाने के बाद वर्ष 2006 में एचडी देवगौड़ा के बेटे कुमारस्वामी के साथ हाथ मिलाया और धरम सिंह की सरकार गिरा दी।
बारी-बारी से मुख्यमंत्री पद की व्यवस्था के तहत कुमारस्वामी मुख्यमंत्री बने और येदियुरप्पा उपमुख्यमंत्री बने। हालांकि, 20 महीने बाद ही जेडीएस ने सत्ता साझा करने के समझौते को नकार कर दिया, जिसके चलते गठबंधन की यह सरकार भी गिर गई और येदियुरप्पा महज 7 दिन तक ही सीएम बन पाए थे। अब आगे के चुनावों का रास्ता साफ हुआ। 2008 के चुनाव में येदियुरप्पा के नेतृत्व में बीजेपी ने जीत हासिल की और दक्षिण में पहली बार उनके नेतृत्व में बीजेपी की सरकार बनी। बहरहाल, येदियुरप्पा बेंगलुरु में जमीन आवंटन को लेकर अपने बेटे के पक्ष में मुख्यमंत्री कार्यालय के कथित दुरुपयोग को लेकर विवादों में घिरे।
अवैध खनन घोटाले का आरोप और येदियुरप्पा ने छोड़ा बीजेपी का साथ
अवैध खनन घोटाला मामले में लोकायुक्त ने उन पर अभियोग लगाया और 31 जुलाई 2011 को येदियुरप्पा को सीएम पद से इस्तीफा देना पड़ा। कथित जमीन घोटाला के संबंध में अपने खिलाफ वारंट जारी होने के बाद उसी साल 15 अक्टूबर को उन्होंने लोकायुक्त अदालत के समक्ष आत्मसमर्पण किया। एक हफ्ते वह जेल में रहे।
इस घटनाक्रम को लेकर बीजेपी से नाराज येदियुरप्पा ने पार्टी छोड़ दी और कर्नाटक जनता पक्ष का गठन किया। हालांकि, शुरुआत में वह केजेपी को कर्नाटक की राजनीति में पहचान दिलाने में नाकाम रहे लेकिन 2013 के चुनावों में उन्होंने छह सीटें और दस फीसदी वोट हासिल कर बीजेपी को सत्ता में आने से रोक दिया एक तरफ येदियुरप्पा अनिश्चित भविष्य के दौर से गुजर रहे थे तो वहीं बीजेपी को भी वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों से पहले अपने अभियान को आगे बढ़ाने के लिए एक ताकतवर चेहरे की जरूरत थी। इस तरह दोनों फिर से एक साथ आ गए। 9 जनवरी 2014 को येदियुरप्पा की केजेपी का बीजेपी में विलय हो गया जिसके बाद 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने राज्य की 28 में 17 सीटों पर जीत दर्ज की।
बीजेपी में येदियुरप्पा की प्रतिष्ठा और कद बढ़ता गया
अपने दामन पर भ्रष्टाचार के दाग के बावजूद बीजेपी में येदियुरप्पा की प्रतिष्ठा और कद बढ़ता गया। 26 अक्टूबर 2016 को उन्हें उस वक्त बड़ी राहत मिली, जब सीबीआई की विशेष अदालत ने उन्हें, उनके दोनों बेटों और दामाद को 40 करोड़ रुपये के अवैध खनन मामले में बरी कर दिया।
कर्नाटक हाई कोर्ट ने घोटाले के आरोपों से किया बरी
इसी मामले के चलते वर्ष 2011 में उन्हें मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था। जनवरी 2016 में कर्नाटक हाई कोर्ट ने भ्रष्टाचार रोकथाम अधिनियम के तहत लोकायुक्त पुलिस की ओर से येदियुरप्पा के खिलाफ दर्ज सभी 15 एफआईआर को रद कर दिया। उसी साल अप्रैल में येदियुरप्पा चौथी बार राज्य बीजेपी के प्रमुख नियुक्त हुए। भ्रष्टाचार के तमाम आरोपों और कांग्रेस के तंज को नजरअंदाज करते हुए बीजेपी ने उन्हें अपना मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया था।