‘निजता’ नागरिक का मौलिक अधिकार:सुप्रीम कोर्ट

1627

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए निजता के अधिकार को नागरिक का मौलिक अधिकार बताया. मुख्य न्यायधीश जे.एस. खेहर की अध्यक्षता में 9 जजों की बेंच ने इस फैसले को सुनाया. इस फैसले से केंद्र सरकार की उस दलील को बड़ा झटका लगा है, जिसमें उन्होंने कहा था कि निजता मौलिक अधिकार नहीं है.

कोर्ट के इस फैसले के क्या मायने हैं. आइए समझते हैं.

1. इस फैसले से आधार स्कीम के नाम पर होने वाली निजता के उल्लंघन को चुनौती दी जा सकेगी.

2. यह फैसला व्हाट्सएप की नई प्राइवेसी पॉलिसी को भी चुनौती देने वाला होगा. दिल्ली हाईकोर्ट ने 23 सितंबर,2016 को एक आदेश दिया था जिसके मुताबिक व अपनी नई प्राइवेसी पॉलिसी लागू कर सकता है. लेकिन 25 सितंबर, 2016 तक एकत्रित हुए डाटा को फेसबुक या अन्य कंपनियों को शेयर नहीं कर सकता है.

3. याचिकाकर्ताओं ने प्राइवेसी को लेकर कहना था कि राइट टू प्राइवेसी एक जन्मजात और कभी ना छिने जाने वाला मौलिक अधिकार है.

4. याचिकाकर्ताओं ने कहा कि आजादी का अधिकार में निजता का अधिकार भी शामिल है, यह एक नेचुरल राइट है. जिस बात की गवाही संविधान भी करता है और इससे नागरिकों को गारंटी मिलती है कि देश में उनके अधिकारों का अतिक्रमण ना हो.

5. याचिकाकर्ताओं के समूह ने प्राइवेसी के अतिक्रमण के तौर पर आधार कार्ड के इस्तेमाल को अनिवार्य बनाने को भी चैलेंज किया, साथ ही डाटा उल्लंघन पर भी अपनी चिंता जाहिर की.

6. वहीं केंद्र प्राइवेसी को अज्ञात और अव्यस्थित अधिकार बता चुका है, जिससे गरीबों को जीवन जीने के अधिकार राइट टू फूड, राइट टू शेल्टर से वंचित करने वाला बताया है.

7. इससे पहले सुनवाई में देश के अटॉर्नी जनरल ने कोर्ट में कहा था कि राइट टू प्राइवेसी को मौलिक अधिकार के तहत नहीं लाया जा सकता है.

8. 10000 लोगों पर हुए एक सर्वे के मुताबिक, ज्यादातर लोगों ने अपनी निजता को लेकर चिंता जताई कहा कि उनकी प्राइवेसी सुरक्षित रहे इसकी निगरानी के लिए कानून की जरूरत है.

9. सर्वे में अधिकतर लोग प्राइवेसी कानून के हक में हैं, लोगों का कहना है कि डिजिटल समय में उनका डाटा सुरक्षित रहना चाहिए.

जानें ‘राइट टू प्राइवेसी’ में आपको मिले हैं क्या-क्या अधिकार

राइट टू प्राइवेसी यानी निजता के अधिकार को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को बड़ा फैसला सुनाया है. कोर्ट ने निजता को मौलिक अधिकार माना है. नौ जजों की बेंच ने सर्वसम्मति से ये फैसला लिया है. माना जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने ये फैसला संविधान के आर्टिकल 21 के आधार पर दिया है.

क्‍या है आर्टिकल 21

संविधान का ये आर्टिकल देश के हर नागरिक को जीवन जीने की आजादी और व्यक्तिगत आजादी के संरक्षण की व्‍याख्‍या करता है. इसमें कहा गया है, ‘किसी भी व्यक्ति को विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अतिरिक्त उसके जीवन और शरीर की स्वतंत्रता के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता’.

आपकी प्राइवेसी है आपका मौलिक अधिकार

राइट टू प्राइवेसी

हालांकि इस आर्टिकल में ‘निजता’ के अधिकार की व्‍याख्‍या नहीं की गई है, ना ही इसका सीधा उल्‍लेख है लेकिन आर्टिकल 21 में शामिल ‘जीवन’ शब्‍द की व्‍याख्‍या में इस पहलू को भी शामिल किया गया है.

गांधी, अंबेडकर भी रहे हैं पक्ष में

आपको जानकर हैरानी होगी कि 1895 में ये मुद्दा उठाया गया था. उस सयम कहा गया था कि भारतीय संविधान बिल में निजता के अधिकार को शामिल किया जाए.

इसके बाद 1925 में ‘कॉमनवेल्‍थ ऑफ इंडिया बिल’ में भी निजता के अधिकार पर जोर दिया गया था. इस समिति के सदस्‍य महात्‍मा गांधी भी थे. फिर 1947 में खुद अंबेडकर ने कहा था कि निजता लोगों का अधिकार है. इसका उल्‍लंघन ना हो, इसके लिए कड़े नियम बनाने होंगे.

फ़ैसला सुनाने वाली इस बेंच में कौन-कौन जज थे. आइए जानते हैं-

चीफ़ जस्टिस जे.एस. खेहर

जस्टिस जगदीश सिंह खेहर का जन्म 28 अगस्त 1952 में हुआ था. पंजाब यूनिवर्सिटी से 1977 में एलएलबी की पढ़ाई करने के बाद खेहर ने इसी यूनिवर्सिटी से एलएलएम की पढ़ाई की.

1979 में पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में खेहर ने वक़ालत शुरू की. जनवरी 1992 में वो पंजाब के एडिशनल जनरल एडवोकेट बने. आठ फ़रवरी 1999 को वो पंजाब हाई कोर्ट में जज नियुक्त किए गए.

2009 में वो उत्तराखंड हाई कोर्ट के मुख्य न्यायधीश बने और 2011 सितंबर में सुप्रीम कोर्ट में जज बने. चार जनवरी 2017 को खेहर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश बने.28 अगस्त, 2017 को वो रिटायर हो जाएंगे.

जस्टिस जे. चेलमेश्वर

चेलमेश्वर का जन्म 23 जून 1953 को आंध्र प्रदेश के कृष्णा ज़िले में हुआ था. उन्होंने 1976 में आंध्र विश्वविद्यालय से एलएलबी की. केरल हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रहे चेलमेश्वर 10 अक्टूबर 2011 को सुप्रीम कोर्ट के जज बने थे.

जस्टिस शरद अरविंद बोबडे

नागपुर (महाराष्ट्र) में 24 अप्रैल 1956 को जन्मे बोबडे ने नागपुर विश्वविद्यालय से एलएलबी किया था. मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के चीफ़ जस्टिस रहे बोबडे सुप्रीम कोर्ट से 23 अप्रैल 2021 को रिटायर होंगे.

जस्टिस राजेश कुमार अग्रवाल

उत्तर प्रदेश से संबंध रखने वाले अग्रवाल का जन्म 5 मई 1953 को हुआ था. उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से कानून की पढ़ाई की. मद्रास हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रहने वाले अग्रवाल ने 17 फ़रवरी 2014 को सुप्रीम कोर्ट के जज के तौर पर शपथ ली थी.

जस्टिस रोहिंग्टन फली नरीमन

जस्टिस आर.एफ़. नरीमन का जन्म 13 अगस्त 1956 को मुंबई में हुआ था. इन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी के फैकल्टी ऑफ लॉ में पढ़ाई की.आर.एफ़ नरीमन को सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश ने सर्वोच्च अदालत में सीनियर वक़ील बनाया था.

इन्हें बनाने के लिए जस्टिस वेंकेटचेलैया ने नियम में संशोधन किया था. जस्टिस नरीमन 45 साल के बजाए 37 साल में ही सुप्रीम कोर्ट में सीनियर वक़ील बन गए थे. सात जुलाई, 2014 को नरीमन सुप्रीम कोर्ट के जज बने.

जस्टिस अभय मनोहर सप्रे

28 अगस्त 1954 को पैदा हुए सप्रे ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की जबलपुर पीठ में प्रैक्टिस की. इसके बाद वह मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में अडिशनल जज नियुक्त हुए. मणिपुर हाईकोर्ट के पहले मुख्य न्यायाधीश बनने वाले सप्रे 13 अगस्त 2014 को सुप्रीम कोर्ट के जज बने थे.

जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़

दिल्ली विश्वविद्यालय की लॉ फैकल्टी से कानून की पढ़ाई करने वाले चंद्रचूड़ 1998 में अडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऑफ इंडिया रहे. वह इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रहे और 13 मई 2016 को उन्हें सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीश नियुक्त किया गया.

जस्टिस संजय किशन कौल

26 दिसंबर 1958 को पैदा होने वाले कौल ने दिल्ली विश्वविद्यालय से 1982 में एलएलबी किया. सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील रहे कौल पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट और मद्रास हाईकोर्ट के भी चीफ़ जस्टिस रहे. उन्होंने 17 फ़रवरी 2017 को सुप्रीम कोर्ट के जज के तौर पर शपथ ली.

जस्टिस एस. अब्दुल नज़ीर

जस्टिस एस. अब्दुल नज़ीर का जन्म पांच जनवरी 1958 को कर्नाटक में हुआ था.
इन्होंने कर्नाटक हाई कोर्ट से 1983 में वक़ालत की शुरुआत की थी. कर्नाटक हाईकोर्ट में नज़ीर को 2003 में अतिरिक्त जज बनाया गया था.

सितंबर 2004 में नज़ीर कर्नाटक हाईकोर्ट में स्थायी जज नियुक्त किए गए.
वो ऐसे तीसरे जज हैं जो बिना किसी हाईकोर्ट के चीफ़ जस्टिस रहे, सुप्रीम कोर्ट के जज बने. इसी साल फ़रवरी में नज़ीर सुप्रीम कोर्ट के जज बने थे.

Leave a Reply