पाकिस्तान एवं चीन अपनी-अपनी सेनाओं का तेजी से आधुनिकीकरण कर रहे हैं। लेकिन भारतीय सेना पुराने हथियारों के भरोसे बैठी है। सेना के पास हथियारों की भारी कमी भी बनी हुई है। स्थिति यह है कि सेना के 68 फिसदी हथियार पुराने हैं। संसद की स्थायी समिति ने अपनी रिपोर्ट में इस पर गंभीर चिंता प्रकट की है।
मंगलवार को भाजपा सांसद मेजर जनरल भुवन चंद्र खंडूरी (सेवानिवृत्त) की अध्यक्षता वाली समिति की संसद में पेश रिपोर्ट में यह चिंता जाहिर की गई है। समिति ने वर्ष 2018-19 के दौरान सेना को आवंटित बजट की जांच की और इसे नाकाफी पाया। समिति ने कहा कि सेना को आधुनिकीकरण के लिए कुल 21,338 करोड़ रुपये प्रदान किए गए हैं। जबकि पहले से चल रही 125 परियोजना को जारी रखने के लिए उसे 29,033 करोड़ रुपये की दरकार है। इसलिए सेना अपने आधुनिकीकरण के लिए कुछ भी नहीं कर सकती।
सेना के पास 24 फीसदी उपकरण ही आधुनिक श्रेणी के हैं। जबकि 68 फीसदी पुराने उपकरण हैं। महज आठ फीसदी उपकरण ही बेहतरीन या स्टेट ऑफ आर्ट श्रेणी के हैं। जबकि किसी सेना के लिए आदर्श स्थिति यह है कि पुराने उपकरण एक तिहाई से ज्यादा न हो। एक तिहाई आधुनिक उपकरण हों और एक तिहाई स्टेट ऑफ आर्ट श्रेणी के हों।
संसदीय समिति के समक्ष सेना ने कहा कि देश को दोहरे मोर्चे पर खतरा है। पाकिस्तान और चीन अपने सेनाओं के आधुनिकीकरण का कार्य तेजी से कर रहे हैं। चीन की सैन्य ताकत अमेरिका के बराबर होने को है। लेकिन भारतीय सेना के पास अपने मौजूदा कार्यक्रमों को जारी रखने के लिए भी बजट नहीं है। सेना ने पठानकोट, कश्मीर में आतंकी शिविर पर हमले, नियंत्रण रेखा पर पाक की बढ़ती फायरिंग और डोकाला में चीन के आक्रामक रुख का जिक्र करते हुए कहा कि उसे संसाधनों की अधिक जरूरत है।
बजट का 63 फीसदी वेतन पर होता है खर्च
समिति ने बजट को कम बताते हुए कहा कि सेना को मिला सिर्फ 14 फीसदी बजट ही आधुनिकीकरण के लिए उपलब्ध रहता है। 63 फीसदी वेतन में चला जाता है। 20 फीसदी सामान्य रखरखाव पर खर्च होता है। जबकि तीन फीसदी ढांचागत सेवाओं स्थापित करने पर खर्च होता है। लेकिन इस बार जो राशि आधुनिकीकरण के मद में आ रही है वह जरूरत से कम है। समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि सेना के आधुनिकीकरण का बजट कुल बजट का 22-25 फीसदी के बीच सुनिश्चित किया जाए।