नई दिल्ली: नए कृषि कानूनों के मुद्दे पर किसानों और सरकार में टकराव बरकरार है। विज्ञान भवन में किसानों और सरकार के बीच आज पांचवें दौर की बातचीत चल रही है। इससे पहले, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार सुबह कैबिनेट के वरिष्ठ साथियों को आवास पर बुलाया। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और कृषि नरेंद्र सिंह तोमर इस मीटिंग में मौजूद रहे। रेल मंत्री पीयूष गोयल भी इसका हिस्सा था। मीटिंग के बाद नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा, ‘शनिवार को किसानों के साथ दोपहर 2 बजे मीटिंग तय है। मुझे उम्मीद है कि किसान सकारात्मक विचार करेंगे और विरोध प्रदर्शन खत्म करेंगे।’ हालांकि किसान संगठनों के नेता दो-टूक कह रहे हैं कि तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने से कम कुछ भी मंजूर नहीं होगा। किसान आंदोलन से जुड़ी सभी ताजा अपडेट्स देखें।
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किसान नेताओं की दो टूक, कम्प्लीट रोलबैक हो
किसान संगठनों के तेवर तल्ख बने हुए हैं। उनकी मांग साफ है कि तीनों कानून पूरी तरह से वापस हों नहीं तो आंदोलन चलता रहेगा। आजाद किसान संघर्ष समिति के पंजाब प्रमुख हरजिंदर सिंह टांडा ने ANI से बातचीत में कहा, “हम कानूनों का पूरी तरह से रोलबैक चाहते हैं। अगर सरकार हमारी मांग नहीं मानती तो हम धरना जारी रखेंगे।”
सरकार को उम्मीद, आज निकल आएगा हल
किसान आंदोलन को विपक्ष का चौतरफा समर्थन मिलने से सरकार के लिए स्थिति विकट हो गई है। लेफ्ट दलों ने किसानों की मांगों को जायज ठहराया है। दूसरी तरफ, केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री कैलाश चौधरी ने कहा कि आज की मीटिंग में किसानों के संदेहों को दूर किया जाएगा। उन्होंने कहा, “यह विपक्ष की राजनीति है। वे प्रदर्शन को और भड़का रहे हैं।’ उन्होंने उम्मीद जताई कि आज दोपहर होने वाली बैठक में कोई न कोई हल निकल आएगा और किसान आंदोलन वापस ले लेंगे।
दिल्ली के बॉर्डर्स पर जारी है किसानों का प्रदर्शन
हजारों किसानों ने दिल्ली की सीमाओं पर डेरा डाल रखा है। सिंघु बॉर्डर हो या फिर नोएडा से लगा चिल्ला बॉर्डर, किसान सड़कें जाम कर बैठे हुए हैं। चिल्ला बॉर्डर पर समाजवादी पार्टी के एक नेता किसानों के लिए खाने-पीने का सामान लेकर पहुंचे थे। किसानों ने किसी राजनीतिक पार्टी से मदद नहीं लेने की बात कहकर उन्हें वापस लौटाया।
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तीन नए कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग लेकर हजारों-हजार किसान सड़क पर हैं। दिल्ली से लगने वाली सीमाएं ब्लॉक कर दी गई हैं। केंद्र सरकार और किसान संगठनों के बीच आज अगले दौर की बातचीत होनी है। किसान कानून वापस लेने से कुछ भी कम स्वीकारने को तैयार नहीं हैं। सरकार थोड़ी नरम दिख रही है लेकिन पूरी तरह रोलबैक का फैसला उसके लिए शर्मिंदगी भरा होगा। अधिकारी किसान संगठनों की मुख्य आपत्तियों को लेकर माथापच्ची कर रहे हैं कि बीच का कोई रास्ता निकल आए। मगर किसान संगठनों को इसकी उम्मीद कम ही लग रही है और ऐसे में वह भारत बंद बुलाकर सरकार पर दबाव और बढ़ाना चाहते हैं। शनिवार को कई जगह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पुतले भी फूंके जाएंगे।
देशभर के किसान संगठनों ने। ऑल इंडिया किसान संघर्ष कोऑर्डिनेशन कमिटी ने भी भारत बंद को अपना समर्थन दिया है। इस संस्था के तहत देशभर के 400 से ज्यादा किसान संगठन आते हैं। यानी सरकार को यह साफ इशारा कर दिया गया है कि किसान आंदोलन राष्ट्रव्यापी होने जा रहा है और आने वाले दिनों में यह और बढ़ेगा ही। तृणमूल कांग्रेस, राष्ट्रीय लोकदल जैसी पार्टियों ने खुलकर आंदोलन का समर्थन किया है तो बाकी विपक्षी दल भी सरकार को घेरे हुए हैं। कुछ राजनीतिक दल भारत बंद को भी अपना समर्थन दे सकते हैं।
नए कृषि कानून को लेकर किसानों को हैं ये 8 डर:
1- किसानों का मानना है कि कृषि बाजार और कंट्रैक्ट फार्मिंग पर कानून से बड़ी कंपनियों को बढ़ावा मिलेगा। कृषि खरीद पर कंपनियों का नियंत्रण होगा। कृषि उत्पादों की सप्लाई और मूल्यों पर भी उनका कब्जा हो जाएगा। भंडारण, कोल्ड स्टोरेज, फूड प्रोसेसिंग और फसलों के ट्रांसपोटेशन पर भी एकाधिकार की आशंका। नए कानून से मंडी सिस्टम के खत्म हो जाएगा।
2- आवश्यक वस्तु कानून में संशोधन से जमाखोरी और ब्लैक मार्केटिंग को बढ़ावा मिलेगा। सभी शहरी और ग्राणीण गरीबों को बड़े किसानों और निजी फूड कारपोरेशन के हाथों में छोड़ देना होगा।
3- कृषि व्यापार फर्म्स, प्रोसेसर्स, होलसेलर्स, ऐक्सपोर्टर्स और बड़े रिटेलर अपने हिसाब से बाजार को चलाने की कोशिश करेंगे। इससे किसानों को नुकसान होगा।
4- कंट्रैक्ट फार्मिंग वाले कानून से जमीन के मालिकाना हक खतरे में पड़ जाएगा। इससे कंट्रैक्ट और कंपनियों के बीच कर्ज का मकड़जाल फैलेगा। कर्ज वसूलने के लिए कंपनियों का अपना मैकनिजम होता है।
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5- किसान अपने हितों की रक्षा नहीं कर पाएंगे। ‘फ्रीडम ऑफ च्वाइस’ के नाम पर बड़े कारोबारी इसका लाभ उठाएंगे।
6- इस कानून में विवादों के निपटारा के लिए SDM कोर्ट को फाइनल अथॉरिटी बनाया जा रहा है। किसानों की मांग है कि उन्हें उच्च अदालतों में अपील का अधिकार मिलना चाहिए।
7- कृषि अवशेषों के जलाने पर किसानों को सजा देने को लेकर भी किसानों में रोष है। किसानों का कहना है कि नए कानून में किसानों को बिना आर्थिक तौर पर मजबूत किए नियम बना दिए गए हैं।
8- प्रस्तावित इलेक्ट्रिसिटी (संशोधन) कानून के कारण किसानों को निजी बिजली कंपनियों के निर्धारित दर पर बिजली बिल देने को मजबूर होना पड़ेगा।