Oxford Covid-19 vaccine trial news: ऑक्सफर्ड-एस्ट्राजेनेका की कोरोना वैक्सीन से दुनियाभर को बड़ी उम्मीदें हैं। लेकिन शुरुआती नतीजों की घोषणा के बाद एक बड़ी चूक का पता चला है जिसके बाद वैक्सीन के डेटा को एक्सपर्ट्स शक की नजरों से देख रहे हैं।एक कप कॉफी की कीमत से भी सस्ती बताई जा रही ऑक्सफर्ड कोरोना वैक्सीन (Oxford Covid Vaccine) पर सवाल उठने लगे हैं। एस्ट्राजेनेका ने इसी हफ्ते दावा किया था कि वैक्सीन 90% तक असरदार है। हालांकि कंपनी ने अब मान लिया है कि कुछ लोगों पर दी गई वैक्सीन की डोज में गलती हुई थी।
एफेकसी (प्रभावोत्पादकता) डेटा पर सवाल खड़े
इससे वैक्सीन के एफेकसी (प्रभावोत्पादकता) डेटा पर सवाल खड़े हो गए हैं। अब एक्सपर्टस पूछ रहे हैं क्या ऐडिशनल टेस्टिंग में यह डेटा बरकरार रहेगा या यह और कम होगा। वैज्ञानिकों ने कहा कि एस्ट्राजेनेका से जो चूक हुई है, उससे नतीजों पर उनका भरोसा कम हुआ है। भारत के लिहाज से भी यह बड़ी खबर है क्योंकि सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया इसी वैक्सीन को ‘कोविशील्ड’ नाम से लाने की तैयारी में है। अगर यूके में ट्रायल डेटा पर पेंच फंसा तो भारत में वैक्सीन उपलब्ध होने में देरी हो सकती है।
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एस्ट्राजेनका ने वैक्सीन पर क्या दावा किया था?
सोमवार सुबह एस्ट्राजेनेका ने ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी के साथ मिलकर बनाई कोरोना वैक्सीन के अंतरिम नतीजे जारी किए थे। डोज की स्ट्रेन्थ के हिसाब से वैक्सीन या तो 90% या 62% असरदार बताई गई थी। डिवेलपर्स के मुताबिक, औसत एफेकसी 70% थी। मगर कुछ देर बाद ही डेटा पर सवाल उठने शुरू हो गए। जिस डोज पैटर्न से 90% तक वैक्सीन असरदार साबित हो रही थी उसमें पार्टिसिपेंट्स को पहले आधी डोज दी गई, फिर महीने भर बाद पूरी। दो फुल डोज वाला पैटर्न उतना असरदार साबित नहीं रहा।
ऑक्सफर्ड वैक्सीन ट्रायल की कौन सी बात छिपाई गई?
एस्ट्राजेनेका ने कहा कि 2,800 से कुछ कम लोगों को कम डोज दी गई थी जबकि करीब 8,900 लोगों को फुल डोज मिली। सवाल उठा कि अलग-अलग डोज के असर में इतना अंतर क्यों है? इसके अलावा कम डोज में ज्यादा असर कैसे हुआ? एस्ट्राजेनेका और ऑक्सफर्ड के रिसर्चर्स ने कहा कि उन्हें यह नहीं मालूम कि ऐसा क्यों हुआ। कुछ जरूरी जानकारी भी नहीं दी गई। कंपनी ने कहा था कि शुरुआती एनालिसिस 131 सिम्प्टोमेटिक कोविड केसेज पर आधारित था लेकिन यह नहीं बताया कि पार्टिसिपेंट्स के कौन से ग्रुप (शुरुआती डोज, रेगुलर डोज और प्लेसीबो) में अलग-अलग कितने मरीज मिले। कन्फ्यूजन तब और बढ़ गई जब यह सामने आया कि एस्ट्राजेनेका ने ब्राजील और ब्रिटेन के दो अलग-अलग डिजाइन वाले क्लिनिकल ट्रायल्स का डेटा मिला दिया है। आमतौर पर दवाओं और वैक्सीन के ट्रायल्स में ऐसा नहीं किया जाता।
एक चूक जो अब साबित हो सकती है वरदान
वैक्सीन डेटा पर उठे सवालों के बीच एस्ट्राजेनेका के शेयर गिरने शुरू हुए तो कंपनी के अधिकारियों ने इंडस्ट्री एनालिस्ट्स से संपर्क साधना शुरू किया। कई ऐसी बातें सामने आईं जिन्होंने शक और गहरा दिया। पता चला कि कंपनी ने किसी पार्टिसिपेंट को आधी डोज देने की नहीं सोची थी। ट्रायल के दौरान ब्रिटिश रिसर्चर्स फुल डोज ही देने वाले थे, लेकिन एक मिसकैलकुलेशन का नतीजा ये हुआ कि पार्टिसिपेंट्स को आधी डोज ही दी गई। इसी के चलते रिसर्चर्स एक अलग डोज पैटर्न तक पहुंच पाए। एक्सपर्ट्स इसे ‘उपयोगी गलती’ तो कह रहे हैं मगर कंपनी ने शुरुआत में इस गलती की जानकारी नहीं दी थी जिसकी वजह से उसकी मंशा संदेह के घेरे में आ गई है।
ऑक्सफर्ड वैक्सीन से हैं सबसे ज्यादा उम्मीदें लेकिन…
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने कोरोना वैक्सीन के लिए 50% एफेकसी का पैमाना रखा है, उसपर तो ऑक्सफर्ड की वैक्सीन खरी उतरती है। लेकिन ताजा घटनाक्रम ने वैक्सीन को लेकर शक का माहौल पैदा कर दिया है। फाइजर, मॉडर्ना या रूस की Sputnik V वैक्सीन के मुकाबले में ऑक्सफर्ड की वैक्सीन कई मामले में बेहतर बताई जा रही थी। एक तो इसकी कीमत बेहद कम है, दूसरा इसका बड़े पैमाने पर उत्पादन आसानी से हो सकता है। तीसरा इसे बड़ी आसानी से स्टोर और डिस्ट्रीब्यूट किया जा सकता है। एक्सपर्ट्स मान रहे हैं कि वैक्सीन बनाने में एस्ट्राजेनेका का कम अनुभव इस पूरे प्रकरण की वजह बना। कंपनी अपने टेस्टिंग प्रोसेस को लेकर भी सवालों के घेरे में रही है। सितंबर में एक पार्टिसिपेंट के बीमार पड़ने पर वैक्सीन का ट्रायल रोकना पड़ गया था।