गुस्से पर काबू पाना है तो पढ़ें यह कहानी

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    एक छोटे से गांव में एक लड़का अपने माता-पिता के साथ रहता था। उस लड़के का स्वभाव काफी खराब था और वह लोगों के साथ गलत व्यवहार करता। वह बहुत जल्दी गुस्सा हो जाता और बुरा भला कहता। उससे पड़ोसी और हमउम्र लड़के नाराज रहते थे। कई बार उसकी पिता से शिकायत की। पिता ने डांट फटकार लगाई। प्यार से भी बहुत समझाने की कोशिश की, लेकिन लड़के का व्यवहार नहीं बदला। वह पहले भी अधिक गुस्सा करने लगा था।

    एकमात्र बेटे के बुरे स्वभाव से माता-पिता काफी निराश रहते थे। उसकी मां और पिता ने कई बार उसको अपने क्रोध को नियंत्रित करने और सभी से अच्छा व्यवहार करने को कहा, लेकिन उनके सभी प्रयास विफल रहे। एक दिन लड़के के पिता को एक आइडिया सूझा।

    एक दिन पिता ने उसे बुलाकर कीलों से भरा बैग और हथौड़ा सौंपा। उन्होंने उससे कहा कि उसे जब भी गुस्सा आए। एक कील को सामने लगी बाड़ (चहारदीवार) पर हथौड़े से ठोक देगा। लड़के ने इसको अपने लिए रूचि वाला कार्य समझा और पिता के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया।

    हर बार जब वह लड़का गुस्से में होता तो बाड़े की ओर दौड़कर उस पर एक कील ठोक देता। बार-बार गुस्से की वजह से उसको बार-बार बाड़े पर कील ठोकने के लिए जाना पड़ता। एक दिन में उसने 30 कीलें ठोक दीं। अगले कुछ दिन में बाड़े पर रोजाना ठोके जाने वाली कीलों की संख्या कम होती गई। उस लड़के को कील ठोकने के लिए बाड़े तक जाना और हथौड़े से कील ठोकने का काम कठिन लगने लगा। उसने अपने गुस्से पर काबू करना शुरू कर दिया, ताकि बाड़े पर कील ठोकने से बच सके। धीरे-धीरे, एक दिन ऐसा भी आय़ा, जिस दिन उसने एक भी कील बाड़े पर नहीं ठोकी, क्योंकि उसने अपने गुस्से पर काबू पा लिया था।

    एक दिन उसके पिता ने उससे कहा कि जब-जब वह गुस्से पर काबू पाए, तब-तब बाड़े की कीलों को निकालना शुरू करे। लड़का उनमें अधिकतर कीलों को निकाल चुका था, लेकिन अभी भी कुछ बाड़े में धंसी हुई थीं। इन कीलों को वह बाहर नहीं निकाल सका। उसने अपने पिता को बताया कि कुछ कीलों को वह निकालने में कामयाब नहीं हो पाया।

    पिता ने पहले तो गुस्से पर नियंत्रण करने के लिए उसकी प्रशंसा की और फिर बाड़े की इशारा करते कहा कि आपको वहां क्या दिख रहा है। लड़के ने कहा कि बाड़े पर बहुत सारे छेद बन गए हैं। पिता ने कहा, आपने बाड़े से कीलों को निकाल दिया, लेकिन छेद यानी निशान बने हुए हैं और अभी भी कुछ कीलों को निकाला नहीं जा सका। ये वो निशान हैं, जो आपके गुस्से और अभद्र व्यवहार के कारण लोगों के मन और दिमाग पर किसी घाव की तरह चस्पा हो गए हैं।

    पिता ने अपने बेटे से कहा कि अभद्र व्यवहार और गलत शब्दों का दूसरों के जीवन पर गलत प्रभाव पड़ सकता है। इसलिए कहा जाता है कि शब्दों का इस्तेमाल सोच समझकर करो। अपने शब्दों औऱ व्यवहार से किसी को दुख नहीं पहुंचाओ, बल्कि उनसे अच्छे संबंध बनाओ।

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