Delhi Assembly Session : दिल्ली विधानसभा का सत्र आज से शुरू; भाजपा ने की घेरने की तैयारी

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Delhi Assembly Session

Delhi Assembly Session : विधानसभा सत्र की शुरुआत 29 नवंबर से होगी। इस सरकार के गठन का यह अंतिम विधानसभा सत्र होगा। क्योंकि फरवरी महीने में आम चुनाव होना है। इस सत्र में पक्ष और विपक्ष पूरी तरह से एक दूसरे पर हमलावर रहेगी और पूरी तरह से राजनीतिक सत्र देखने को मिल सकता है।

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सरकार जहां अपने दस साल की उपलब्धियों को सदन में गिनाएगी और केंद्र सरकार पर निशाना साधेगी वहीं विपक्ष ने भी इसे लेकर खास तैयारी की है। दिल्ली सरकार की वित्तीय स्थितियों पर वह पूरी तरह हमलावर रहेगा। चुनाव के पहले सत्र हंगामेदार होने के आसार है।

‘आखिर क्यों दबाई जा रही CAG की रिपोर्ट’

विपक्ष, लगातार अपनी बातों को उठाने में सक्रिय है. विधानसभा सत्र शुरू होने से एक दिन पहले ही बीजेपी विधायकों ने उपराज्यपाल से भेंट करके सरकार की अनियमितताओं की शिकायत की. उनका आरोप है कि सरकार ने कई महत्वपूर्ण विभागों के कैग की रिपोर्टों को टेबल पर रखने में चूक की है. आज के सत्र में यह मुद्दा भी प्रमुखता से उठ सकता है।

केंद्र से 10,000 करोड़ रुपये की मांग

दिल्ली सरकार (Delhi Assembly Session) ने चालू वित्त वर्ष के लिए केंद्र सरकार से 10,000 करोड़ रुपये की मांग की है, जो विपक्ष के लिए एक बड़ा मुद्दा है. विधानसभा में नेता विपक्ष विजेंद्र गुप्ता ने इस पर तीखी आलोचना करते हुए कहा कि सरकार की वित्तीय स्थिति ‘डगमग’ है और यह आम आदमी पार्टी की नीतियों का परिणाम है. उन्होंने कहा कि सरकार का गैर-जिम्मेदाराना रवैया और मुफ्त रेवड़ियों की घोषणा के चलते सरकारी खजाने का दुरुपयोग हो रहा है।

विजेंद्र गुप्ता ने यह भी दावा किया कि पिछले 10 वर्षों में AAP की सरकार ने ऐसी योजनाओं पर धन खर्च किया है जिनका जनता को कोई लाभ नहीं मिला. विशेष रूप से शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्रों में, करोड़ों रुपये बर्बाद होते रहे हैं. उन्होंने इशारा किया कि पहले दिल्ली हमेशा सरप्लस राजस्व के लिए एक उदाहरण हुआ करती थी, लेकिन अब वह राजस्व घाटे का सामना कर रही है।

कर्जा लेने के निर्णय पर बोली भाजपा

दिल्ली की मुख्यमंत्री द्वारा केंद्र से 10,000 करोड़ रुपये का कर्जा लेने के निर्णय पर विजेंद्र गुप्ता ने कहा कि इसे चुकाने में सरकार को 15 साल लगेंगे, जिसमें ब्याज के साथ कुल देनदारी 50,000 करोड़ रुपये तक पहुंच सकती है. ऐसे में यह स्पष्ट है कि यह निर्णय न केवल वर्तमान सरकार पर, बल्कि भविष्य की सरकारों पर भी नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।

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