उत्तराखंड की स्वर कोकिला लोक गायिका कबूतरी देवी का निधन

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अल्मोड़ा। प्रसिद्ध लोक गायिका कबूतरी देवी का पिथौरागढ़ के जिला अस्पताल में निधन हो गया। 70 वर्षीय कबूतरी देवी का शुुक्रवार को अचनाक स्वास्थय खराब होने पर उन्हें जिला चिकित्सालय लाया गया जहां पर डाक्टरों ने उन्हें तुरंत हायर सेंटर ले जाने की राय दी। शनिवार की सुबह उन्हे देहरादून ले जाने के लिए हैलीकाप्टर नहीं उपलब्ध हो पाया इस दौरान उनका स्वास्थ्य बिगड़ गया। उन्हें वापस जिला अस्पताल उपचार के लिए लाया गया जहां कुछ समय बाद चिकित्सकों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। उनका अंतिम संस्कार रामेश्वर घाट में कर दिया गया। उनकी विवाहित बेटी हेमंती देवी ने उन्हें मुखाग्नि दी। इस मौके पर संस्कृति कर्मी, रंगकर्मी सहित अनेक उनके चाहने वाले लोग शामिल हुए।
        पिथौरागढ़ के क्वीतड़ गांव की रहने वाली उत्तराखंड की पहली लोक गायिका कबूतरी देवी लोक गायन की अनेक विधाओं की जानकार रही वह अपने इस कला का प्रदर्शन देशभर में करती रही। कबूतरी देवी ने किसी स्कूल में शिक्षा नहीं ली। वह किसी संगीत घराने से भी ताल्लुक नहीं रखती थी। पहाड की एक सीधी साधी सी महिला थी उन्होंने गांव में जिन लोक गीतों को सुना या फिर रेडियो से जो गीत उन्होंने सुने उन्हीं को याद कर गुगुनाती रहती थी। गायन का रियाज वह जंगल में घास काटते समय किया करती थी। “पहाड़ो ठण्डो पाणि, कि भलि मीठी बाणी” पसिद्ध लोक गीत उनकी खनकती आवाज में लोगों को मंत्रमुग्ध करने वाला होता था। 70 से 80 के दशक में आकाशवाणी नजीबाबाद और लखनऊ से उनकी मधुर आवाज में अनेक लोक गीत सुनाई देते थे। उस दौर में कबूतरी देवी की रिकाडिंग के लिए आकाशवाणी से उन्हें बराबर आमंत्रण मिलते रहते थे। कबूतरी देवी की खनकती आवाज में जब कोई भी गीत रेडियों से सुनाई देता तो एक बार को राह चलता अनजान आदमी भी उसे सुनने को मजबूर हो जाता है।
           प्रदेश भर के संस्कृति कर्मियों ने लोक गायिका कबूतरी देवी के निधन को अपूरणीय क्षति बताते हुए शोक व्यक्त किया है। वहीं सरकार की संस्कृति कर्मियों के प्रति उदासीनता को लोक संस्कृति के संरक्षण के लिए घातक बताया है। संस्कृति प्रेमियों, रंग कर्मीयों का कहना है कि यदि समय से उपचार की व्यवस्था हो जाती तो शायद कबूतरी देवी को बचाया जा सकता था।

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