नासा ने कहा, प्रदूषण के लिए पंजाब की पराली जिम्मेदार

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नई दिल्ली, 06 नवम्बर (हि.स.)। उत्तरी भारत में खतरनाक प्रदूषण का स्तर अब विश्व में सुर्खियां समेट रहा है और अमेरिका की स्पेस एजेंसी ‘नासा’ ने इस पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा है इसका कारण पंजाब में खेती के बाद बचे हुए मलबे को जलाना है।

‘नासा’ ने कहा है अक्टूबर महीने के आरम्भ में पृथ्वी अवलोकन उपग्रहों ने पंजाब में छोटे स्तर पर जलाई जाने वाली आग का पता लगाना शुरू किया था। इस आग में पिछले हफ्ते में तेजी आयी। नवंबर तक यह आग राज्य के अनेक भागों में दिखाई दी जिसके कारण धुएं की एक मोटी परत उत्तरी भारत पर छा गयी।

नासा ने कहा है विज़िबल इन्फ्रारेड इमेजिंग रेडियोमीटर सुइट (VIIRS) ने सुओमी एनपीपी उपग्रह पर 02 नवंबर को एक प्राकृतिक रंग की छवि दिखा दी। ऐसी आग छोटी और बहुत कम समय तक रहती है और कम तापमान पर जलती है। इस कारण ऐसी आग धरती के साथ ही रहती है और ज़्यादा ऊंचाई पर नहीं जाती। दो नवम्बर को हवा के कारण आग का यह धुंआ, जिसके साथ मिट्टी, धूल और आंशिक रूप से अधजले पौधों के छोटे कण राजधानी दिल्ली के आकाश की ओर गए। पंजाब से इस धुंए, साथ में दिल्ली शहर के प्रदूषण और दिवाली के पटाखों ने प्रदूषण का स्तर असामान्य बना दिया।

नासा ने 2004 और 2014 के बीच एक शोध का हवाला देते हुए कहा कि पंजाब में प्रति वर्ष ऐसी जलाई जाने वाली आग सामान्यतः मध्य नवम्बर तक कम हो जाती है। पंजाब को भारत देश का अन्नप्रदेश बताते हुए नासा ने कहा है यह राज्य देश के सबसे ज़्यादा गेहूं और चावल उत्पादकों में से एक है। परंतु अक्टूबर और नवम्बर के कुछ सप्ताहों में यह प्रदूषण फ़ैलाने वाला एक  राज्य भी बन गया।

नासा ने कहा है पंजाब में फसल उगाने के दो मौसम और दो मुख्य फसलें हैं। चावल मई में लगाया जाता है और सितंबर में तैयार हो जाता है जबकि गेहूं नवंबर में लगाया जाता है और अप्रैल तक तैयार हो जाता है। चावल फसल पैदा होने के बाद काफी कण छोड़ देता है, अनेक किसान अक्टूबर और नवम्बर में उन कणों को जल देते हैं ताकि उनके खेत अगली फसल के लिए फिर से तैयार हो जाएं।

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